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उसी चमन जैसा…

©गायकवाड विलास

परिचय- लातूर, महाराष्ट्र


 

मानवता का संदेशा लेकर आया हूं मैं,

सिर्फ इन्सानियत का गीत गुनगुनाता हूं मैं।

नफ़रत और दुश्मनी में क्या रखा है यारों जीवन में,

उसी खुबसूरत जिंदगी का दर्पण तुम्हें दिखाता हूं मैं।

 

कभी खिले हुए उस चमन को देखो तुम,

वहां सभी फूल देखो कैसे मुस्कुराते है।

वैसे ही है ये जिंदगी हमारी खुबसूरत,

फिर भी क्युं हम यहां एक-दुसरे के दुश्मन बन बैठे है।

 

हर एक नज़्म मेरी यही आपसे कह रही है,

सुलगते जहां के लिए अमन की दुवाएं मांग रही है।

हम इन्सान है और इन्सानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं,

यही विचारधाराओं की मशाल लेकर वो आयी है।

 

अमीरी और ग़रीबी का ये सिलसिला कभी होगा नहीं कम,

मगर कौनसा ग़रीब किसी की दौलत यहां छीन रहा है।

सभी जी रहे है अपनी-अपनी तरह से यहां,

फिर भी कौन सा अहंकार यहां इन्सानियत को जला रहा है।

 

कितने भूखे नंगों से भरी पड़ी है ये दुनिया सारी,

पेट के भूख से बड़ी नहीं है यहां कोई भी मजबूरी।

किसी भी भूखे नंगों से पूछो भाई तेरा धर्म क्या है,

उसी किसी धर्म की नहीं,सिर्फ रोटी की जरूरत है।

 

इसीलिए मानवता का संदेशा लेकर आया हूं मैं,

सिर्फ इन्सानियत का गीत गुनगुनाता हूं मैं।

ये चार दिनों की जिंदगी है यहां सभी की यारों,

उसी खुबसूरत जिंदगी को तुम्हें खिले चमन जैसा बनाना है – – –

 

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गायकवाड विलास

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