नशा मुक्त राष्ट्र की संकल्पना न जाने कब होगी साकार | Newsforum
©द्रौपदी साहू (शिक्षिका), कोरबा, छत्तीसगढ़
परिचय- गाइडर जय भारत इंग्लिश मीडियम हाई स्कूल, जिला उपाध्यक्ष- अखिल भारतीय हिंदी महासभा.
देश में 90 फीसदी पुरुष शराब का सेवन करते हैं। क्या शराब पीना हमारे लिए बहुत आवश्यक है? क्या इसके बगैर लोग जीवित नहीं रह सकते? लोग आखिर शराब का सेवन क्यों करते हैं? खुशी मनाने के लिए शराब चाहिए। गम भुलाने के लिए शराब चाहिए। चिंता दूर करने के लिए शराब चाहिए। शराब पीने के ना जाने कितने बहाने सुनने को हमें मिलते हैं। थोड़ा सा तो पिये हैं; क्या होता है? किसी को पता नहीं चलेगा। यह तो आज का फैशन है। सब पीते हैं। ये सब बातें हमें सुनने को मिलतीं हैं, लेकिन छोड़ने की बात कोई नहीं करता है। बल्कि जो नहीं पीता है, उसे भी नशे की चंगुल में फंसाने की कोशिश में रहते हैं।
स्कूल के शिक्षक और विद्यार्थी मिलकर गांव व शहरों में रैलियां निकालकर लोगों को नशा न करने के लिए जनजागृति अभियान भी चलाते हैं। इस अभियान में लोगों को शिक्षक और विद्यार्थी नशे से होने वाले दुष्प्रभाव को बताते हैं। नारे व कविताएं लिखकर और बोलकर लोगों को जागरूक करने की कोशिश करते हैं। लोग इस कार्य से थोड़ा बहुत प्रभावित होते हैं, और इसकी सराहना भी करते हैं, किंतु नशा छोड़ने का विचार तक नहीं करते।
जब चुनाव का समय आता है सरकारें भी शराबबंदी करने के लिए वादा करतीं हैं, किंतु सरकार बनने के बाद इस पर विचार करना छोड़ देती है, बल्कि सरकार खुद शराब की दुकानें और भट्ठियां खोलने की अनुमति दे देतीं हैं। शराब की वजह से न जाने कितने परिवार बर्बाद हो गए। कितनों का घर उजड़ गया। किसी का इज्जत चला गया। कोई गरीब से और गरीब हो गया। धन-संपत्ति, घर, जेवर सब कुछ बिक गया, सिर्फ शराब की वजह से। लड़ाई-झगड़े, मार-पीट, गाली-गलौज करना, दिन भर चिड़चिड़ाते रहना, बड़बड़ाते रहना, शराब पीने वालों की आदत होती है। शराब पीने वाले के परिजन इन सभी समस्याओं को झेलते हैं। उनका जीवन नर्क सा बन जाता है।
शराब पीने वाले के घर में हर रोज झगड़े, गाली-गलौज, मार-पीट आम बात हो गई है। पीने वाला तो घर की संपत्ति, जेवर और राशन तक को बेचकर अपने पीने की व्यवस्था कर लेता है, लेकिन उसके परिजन के लिए दो वक्त की रोटी नसीब नहीं होती है। यदि किसी दिन चूल्हा जला तो शराबी के ताने और झगड़े की वजह से वह भी पड़ा रहता है। या शराबी खुद उसे फेंक देता है। नशे की हालत में कभी-कभी इतना मारपीट करता है कि जान तक चली जाती है। इस तरह की घटनाएं भी अब आम बात हो गई है।
शराब पीने वाला सिर्फ और सिर्फ अपने शराब के बारे में सोचता है कि किस तरह से शराब पीने को मिले, इसके बदले में चाहे घर बिक जाए, पत्नी-बहन या फिर घर का राशन अथवा पत्नी के जेवर, वह सबकुछ दांव पर लगाता है। उनमें सोचने-समझने की क्षमता ही नहीं रहती और उनकी सारी करतूत का परिणाम उनके परिजन को भुगतना पड़ता है।
सरकार को ये समस्याएं बहुत अच्छे से पता है, किंतु वे इस पर रोक नहीं लगा रही है। क्योंकि शराब की बिक्री से सरकार को आर्थिक लाभ होता है। इसलिए वह ना तो दुकान बंद करेगी, ना भट्ठी, और ना ही शराबबंदी करेगी। चुनाव आने पर खुद शराब को घर-घर बंटवाती है। शराब के दम पर चुनाव भी जीतने की कोशिश रहती है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो देश कितना प्रगति करेगा?
जिस तरह एक बच्चे को “टीवी मत देखो” कहने से, वह बात नहीं मानता और टीवी का लत छुड़ाने के लिए टीवी बंद करना पड़ता है। उसी तरह शराब पीने वाले को शराब मत पीयो कहने से वे कभी भी नहीं मानेगा। इसके लिए यदि शराब की दुकानों और भट्ठियों को ही बंद कर दिया जाए, तो अपने आप उनमें सुधार होगा। शराबबंदी से देश की अर्थव्यवस्था जरूर डगमगायेगी किंतु सरकार को लोगों के हित के बारे में सोचना चाहिए। जिस तरह कोरोनावायरस पर नियंत्रण के लिए सरकार को लॉक डाउन करना पड़ा। ठीक इसी तरह शराब पीने वालों पर नियंत्रण के लिए सरकार को शराब की हर दुकान और भट्ठी पर लॉक लगाना चाहिए।
जब तक शराब की दुकानें और भट्ठियां खुली रहेंगी। तब तक किसी भी हाल में शराबबंदी नहीं हो सकती। शराबबंदी से सरकार को आर्थिक समस्या जरूर आएगी, लेकिन इससे देश के युवा वर्ग सुधरेंगे और देश की महिलाएं शराबी के आतंक से सुरक्षित रहेंगी और खुशी-खुशी सुख पूर्वक अपना जीवन यापन करेंगी। शराबबंदी से देश के युवा वर्ग सभ्य बनेंगे। उनमें सोचने समझने की क्षमता भी विकसित होगी और देश के विकास और राष्ट्रहित के बारे में भी वे सोचेंगे और हमारा देश विकास की ओर अग्रसर होगा। यदि शराबबंदी नहीं किया गया तो हमारे देश की जनता गरीब से और गरीब होती जाएगी। महिलाओं पर अत्याचार भी बढ़ते जाएंगे और महिलाओं की सिसकियों की गूंज कानों में गूंजती रहेगी और न जाने कब नशा मुक्त राष्ट्र की संकल्पना साकार होगी।