देखो फिर से उजड़ ना जाएं- – –
©गायकवाड विलास
परिचय- मिलिंद महाविद्यालय, लातूर, महाराष्ट्र
छोड़ दो ये हिन्दू मुस्लिम बचाओ अब ये वतन,
देखो सदियों बाद खिला है ये हमारा प्यारा चमन।
अनपढ़ गंवार नहीं हो अब तुम इस संसार में,
इसी चमन से जुड़ा है तुम्हारे सुख भरें घर-घर का दामन।
कोई कहानी, कोई कथा नहीं है ये हमारा संविधान,
उसी संविधान की वजह से ही सभी को मिला है यहां मान-सम्मान।
सभी जाति धर्मों को एकता में बांधकर रखा है उसने,
फिर कैसी ये लड़ाई और क्या है ये हिन्दू और मुसलमान ?
कहीं पर मस्जिद, कहीं पर मंदिर और कहीं पर चर्च और गुरूद्वारा है,
मंदिर, मस्जिद, चर्च और गुरूद्वारा सभी तो यहां पर आबाद है।
आजादी के पहले, आजादी के लिए हम सब यहां एक साथ थे,
फिर आज क्युं इस देश में ये नफरत की हवाएं यहां बह रही है।
कुछ गद्दारों की नीतियां अब तो समझ जाओ मेरे देशवासियों,
संविधान के बगैर हमें यहां और कोई बचानेवाला नहीं है।
स्वातंत्र्य, समता, बंधुता और भाईचारा यही है उस संविधान का नारा,
पढ़ो उस संविधान को, सिर्फ वही संविधान ही हमारा भाग्यविधाता है।
सुनो सभी मेरी मां और बहनों कल क्या हाल था तुम्हारा,
देखो कल की उसी बंद दीवारों में तुम्हारी कई पीढ़ियां यहां खत्म हुई है।
आज भी सभी नारियों का मान-सम्मान और अभिमान है ये संविधान,
उसी संविधान की वजह से ही चारों दिशाओं में तुम्हारी ऊंची उड़ान है।
छोड़ दो ये जाति धर्मों का खेल, बचाओ अब ये वतन,
देखो सदियों बाद खिला है ये हमारा प्यारा चमन।
तीन रंगों से बना ये तिरंगा, हम सभी का है ये अभिमान,
देखो फिर से उजड़ ना जाएं, हमारी इस मातृभूमि का दामन – – –
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