चलत हे धान लुवई….

©अशोक कुमार यादव (शिक्षक)
परिचय- मुंगेली, छत्तीसगढ़.
खेत के बोंवाए धान ह पाकगे,
हँसिया धर के निकले बनिहार।
पागी खोंच के लुवत हें जम्मों,
बिकट सोन उगले खेती-खार।।
सिला बिनत हें गाँव के टूरी-टूरा,
पसर-पसर गबके लाडू अउ मुर्रा।
सुकसी मछरी के साग ह सुहावय,
जाड़ म हनय डोकरा बबा मेछर्रा।।
माईलोगिन डोहारे बोझा बाँधके,
टूरा पिला मन खांध म धरे हें सुर।
रचमच-रचमच बइला-गाड़ी आगे,
कोठार म खरही गंजे परबत लुर।।
अधिरतिया म किसान दउरी फांदे,
झरे धान के करे बिहनिया ओसाई।
पंखा के हावा ले उड़ागे बदरा मन,
पोठ-पोठ बीजा के करय नपाई।।
कोठी-डोली म लछमी के होगे बास,
तिहार मनाए के चलय खूब तियारी।
नवा चाउर के सोहारी अउ दूधफरा,
रंधनही खोली म बनावत हे सुवारी।।
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