आह! जिन्दगी! वाह! | ऑनलाइन बुलेटिन
©हिमांशु पाठक, पहाड़
परिचय– नैनीताल, उत्तराखंड.
जिन्दगी! हर घड़ी, दंश देती रही,
और आंखों से आंसू छलकने लगें।
किससे जाकर शिकायत करूं मैं भला,
हर कोई आज मुझपर है, हंसने लगे।
जिन्दगी! हर घड़ी, दंश देती रही,
जुबां खामोश थी, मन में हलचल मची,
और कदम, आज मेरे लड़खड़ाने लगे।
जिससे कहता मैं, हाल दिल के मेरे,
हर वो ही आज मुझपर थें हंसने लगे।
मेरी मजबूती ही मेरी ताकत और थी, दोस्त!
मेरी मजबूती को लोग तोड़ते थे चले।
जिन्दगी हर घड़ी, दंश देती रही,
और आंखों से आंसू छलकने लगे।।
किसको मैं दोष दूँ और क्यों दूँ भला,
कल तलक हम भी दूसरों पर हंसने थे लगे।
आज खुद पे जो गुजरी, समझने लगे।
हम दूसरों को दोष देने को हैं चले।
लोग सड़कों पर थे घायल, मौत से लड़ती रहे
अंतर तमाशबीन भीड़ तस्वीरें खिंचवाने लगे।।
कैसी, जालिमों से आज हुआ सामना,
सोचकर मौत भी आज रोने लगी।।
जिन्दगी हर घड़ी दंश देती रही,
अंदर तमाशबीन सड़कों पर हंसने लगीं।।