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शर्म | ऑनलाइन बुलेटिन

©हरीश पांडल, विचार क्रांति

परिचय– बिलासपुर, छत्तीसगढ़ 


 

शर्म करो ऐ देश

के बहुजनों

आजादी के इतने

वर्षों बाद भी

शासक नहीं बन

पाये तुम ?

मत का अधिकार

क्यों मिला

यह भी नहीं समझ

पाये तुम ?

एक ब्यक्ति, एक मत

का समानता

मिला हुआ है

फिर अपनी बहुमत

का परचम

क्यों नहीं लहराये

तुम ??

नारे बाजी बहुत हुआ?

आंदोलन, हड़तालें

बहुत हुआ?

जमीर ने तुम्हारे

क्या तुम्हें, नहीं छुआ ?

हाथ उनके समक्ष

फैलाते हो

जिन्हें तुम खुद ही

शासक बनाते हो ?

स्वयं शासक क्यों

नहीं बन जाते ?

बहुजनों की संख्या को

क्यों नहीं, भुनाते हो ?

अपना मत, उन्हें

मत दान करो?

जो सेवक तुम्हें ही

बनाते हैं ?

जागो भारत के मेरे

बहुजनों

समता समानता, के

विरोधियों को

सबक अब तो सिखलाओ

बहुजनों तुम शासक

बन जाओ

बहुजनों तुम शासक

बन जाओ ….


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