गुरु; मां की महिमा । Newsforum
©वंदिता शर्मा, शिक्षिका, मुंगेली, छत्तीसगढ़
गुरु; मां की महिमा क्या लिखूं,
गुरु का स्थान ही ईश्वर से ऊंचा है।
जिसकी महिमा अपरम्पार है।
गुरु, मां हो या शिक्षक हो,
हमें जीवन जीने का तरीका सिखाती हैं ।
गुरु; मां तेरी महिमा अपरंपार।।
दुनिया से अवगत करावाती है ।
अच्छे बुरे का भेद बताती है।
हम क्या हैं? हमारा अस्तित्व क्या है ?
सदमार्ग में चलना सिखाती हैं।
बिन गुरु ज्ञान असम्भव है।
चाहे वह त्रेतायुग हो,
चाहे द्वापरयुग हो,
चाहे कलयुग हो,
बिन गुरु ज्ञान है अधूरी।
गुरु; मां तेरी महिमा अपरंपार।।
गुरु ही ऐसा मार्गदर्शक है।
जो ऐसी शिक्षा देती है,
न उसके मन में उसके कोई भेद-भाव उपजे।
न मन कुविचार जिसको देखकर अवगुण भागे
गुरु; मां तेरी महिमा अपरंपार।
गुरु का सच्चे मन से ध्यान में करे,
गुरु से मिलेगा ऐसा ज्ञान।
जो नवजीवन ज्योतिर्गमय कर दे,
नई ऊर्जा शक्ति का हो संचार।
गुरु; मां तेरी महिमा अपरंपार।।