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Boundaries: दायरा…

©नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़

परिचय- मुंबई, आईटी टीम लीडर


 

Boundaries: सिमटने लगा है इंसाफ़ का दायरा जब से,

कानून से यकीं उठने लगा गरीब का,

बातें तो हुई बहुत गूंगों की अदालत में,

जज ने कहा अदालत में, खेल था ये नसीब का।(Boundaries)

 

ज़ंजीर को पायल कहकर पहना तो दिया,

घूंघट के दायरे में सिमट गई औरत,

पूजते रहे लक्ष्मी और दुर्गा बोलकर,

जख्म के दाग छुपा न पाई मिट्टी की मूरत।(Boundaries)

 

अंधेरे में खोने लगा अदब का दायरा,

बुजुर्गों को अब वो इज़्ज़त कहां मिलती है,

मिट लगी है इंसानियत हर क़दम पे,

रौशन वहीं दिखी जहां एक शमा जलती हैं।(Boundaries)

 

Nilofar Farooqui Tauseef, Mumbai
नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़

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