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भिक्षु कुमारजीव; जिन्होंने चीन में भारतीय Buddh संस्कृति की नींव रखी, चीन ने उन्हें ‘राष्ट्रीय राज शिक्षक’ का सम्मान दिया…और कश्मीर के ऐसे धम्म देवदूत को भारत ने भुला दिया…

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डॉ. एम एल परिहार

©डॉ. एम एल परिहार

परिचय- जयपुर, राजस्थान.


 

Monk Kumarajiva, who laid the foundation of Indian Buddhist culture in China, sowed the seed of India-China cultural friendship. China gave him the honor of ‘National Raj Teacher’.

 

ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन: भिक्षु कुमारजीव, जिन्होंने चीन में भारतीय बुद्ध संस्कृति की नींव रखी, भारत- चीन सांस्कृतिक मैत्री का बीज बोया. चीन ने उन्हें ‘राष्ट्रीय राज शिक्षक’ का सम्मान दिया…. और चीन में भारतीयता का गौरव स्थापित करने वाले कश्मीर के ऐसे धम्म देवदूत को भारत ने भूला दिया..(Buddh)

 

बुद्ध धम्म के विद्वान कुमारजीव को भारत में कोई नहीं जानता लेकिन चीन व जापान में उनको बहुत श्रद्धा से याद किया जाता है. जगह जगह उनकी स्मृति में विहार व स्मारक बने हुए हैं.

 

एक हजार साल तक भारत से सैंकड़ों भिक्षु बुद्ध वाणी के प्रचार के लिए दुर्गम घने जंगलों, बर्फीले पर्वतों और अथाह रेगिस्तान में अपनी जान जोखिम में डालकर चीन गये,उनमें कुमारजीव प्रमुख थे. (Buddh)

 

कुमारजीव के पिता कुमारायण कश्मीर के पास एक राज्य में मंत्री थे. राजसी जीवन रास नहीं आया. भिक्षु बनकर धम्म के प्रचार के लिए चीन को निकल पड़े. दुर्गम रास्तें पार करते हुए चीन तिब्बत के रेशम मार्ग पर स्थित कुच देश पहुंचे. वहां के राजा ने ऐसे विद्वान का स्वागत कर राजगुरु बनाया.

 

वहां कुमारायण का राजकुमारी जीवा से विवाह हो गया. कुमारजीव इन्हीं के पुत्र थे. विवाह के एक साल बाद ही कुमारायण का देहांत हो गया. (Buddh)

 

अपने पति की इच्छा पूरी करने के लिए राजकुमारी जीवा भिक्षुणी बन गई और अपने नौ साल के बेटे कुमारजीव को धम्म अध्ययन के लिए कश्मीर ले आई. उन दिनों कश्मीर में नालंदा से भी बड़ा बौद्ध अध्ययन केंद्र था.

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कई साल तक अध्ययन के बाद कुमारजीव और माता मध्य एशियाई देशों के कई बौद्ध अध्ययन केंद्रों का भ्रमण करते हुए वापस कुचा देश पहुंचे. भिक्षुणी माता ने कुमारजीव को मानवता की सेवा के लिए समर्पित कर दिया. जीव ने तीस साल तक धम्म प्रचार किया. ख्याति दूर-दूर तक पहुंची. (Buddh)

 

चीन के सम्राट को जब यह मालूम हुआ तो कुचा देश के राजा को संदेश पहुंचाया कि वह कुमारजीव को हमेशा के लिए उनके साम्राज्य में भेजें. लेकिन राजा ने ऐसे विद्वान को भेजने से मना कर दिया. चीन का सम्राट हर हालत में भिक्षु कुमारजीव को लाना चाहता था.

 

इसके लिए कुचा देश पर बड़ा आक्रमण किया. कुमारजीव को बंदी बनाकर चीन ले गए. विकट समय में भी कुमारजीव अपने माता-पिता के उद्देश्य को पूरा करने के लिए धम्म प्रचार में लग गए. इसके लिए सबसे पहले बौद्ध दर्शन के सैकड़ों ग्रंथों का पालि व संस्कृत से चीनी में अनुवाद किया क्योंकि उनका मानना था कि साहित्य ही वैचारिक व सांस्कृतिक परिवर्तन का आधार है. (Buddh)

 

सम्राट ने सहयोग के लिए आठसौ विद्वान कुमारजीव के साथ नियुक्त किए, विशाल भवन व विहार बनवाएं.

 

अनुवाद व शिक्षण के साथ लोक जीवन में कुमारजीव के धम्म संबंधी व्याख्यान बहुत प्रभावशाली होते थे. उनकी ख्याति जल्दी ही दूर दूर तक पहुंच गई. उन्होंने ऐसे हजारों विद्वान शिष्य भी तैयार कर लिए जो उनके देहांत के बाद भी बुद्ध की करुणा व मैत्री के धम्म का प्रचार करते रहे.

 

ऐसे महान विद्वान को चीन के सम्राट ने ‘राष्ट्रीय राज शिक्षक’ का गौरव प्रदान किया.

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चीन में भारतीयता का गौरव स्थापित करने वाले कश्मीर के ब्राह्मण कुल में जन्मे महान भिक्षु कुमारजीव का 81 वर्ष की उम्र में सन् 413 में चीन में परिनिर्वाण हुआ. उनकी महान धम्म सेवा को याद कर हम सभी सम्मान में नतमस्तक हैं.

 

भवतु सब्बं मंगलं..सबका कल्याण हो..सभी प्राणी सुखी हो 

 

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