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एक मार्गदर्शक थे ललित सुरजन | newsforum

?? Lalit Surjan ji ??

 


आज ललित सुरजन हमारे बीच नहीं हैं। उनकी याद उन लोगों के जेहन में हमेशा बनी रहेगी जिन्होंने उन्हें पढ़ा है, करीब से जाना है। मुझे याद है ललित सुरजन जी से पहली मुलाकात वर्ष 2005 में हुई थी। मेरी किताब सफाई कामगार समुदाय इसी वर्ष राधाकृष्ण प्रकाशन से प्रकाशित हुई। मैं इसके लोकार्पण को लेकर चिंतित था। कुछ ही साल हुए थे रायपुर में आए। यहां मेरा कोई परिचित नहीं था। जांजगीर निवासी कवि और मेरे श्रद्धेय स्वर्गीय नरेंद्र श्रीवास्तव ने मुझे ललित सुरजन जी का फोन नंबर दिया और कहा तुम उनसे मुलाकात करो। वे तुम्हारी मदद करेंगे। मैंने अपने कार्यालय से सुरजन जी को फोन मिलाया और उनसे मिलने चला गया। उन्होंने किताब देखी और प्रसन्न हो गए। उन्होंने कहा इस किताब को लिखते समय बताना था। हम इसकी पूरी सीरीज देशबंधु में प्रकाशित करते। बहरहाल उन्होंने पूछा इसका लोकार्पण हुआ है या नहीं ? मैंने कहा नहीं हुआ, तो उन्होंने कहा – हम इसका लोकार्पण करेंगे लेकिन तुम्हें एक-डेढ़ महीने इंतजार करना होगा। इस बीच उन्होंने समीक्षा लिखने हेतु प्रभाकर चौबे जी को एक किताब मुहैया कराई।

 

रायपुर के एक बड़े होटल में इसका लोकार्पण मायाराम सुरजन फाउंडेशन के बैनर तले संपन्न हुआ। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि रामपुर उत्तरप्रदेश के प्रसिद्ध लेखक कंवल भारती, नागपुर से आईं साहित्यकार सुशीला टाकभौरे और दिल्ली से कवि गंगेश गुंजन उपस्थित हुए। सभी समाचार पत्रों में इस लोकार्पण की चर्चा हुई। दूरदर्शन ने भी इस कार्यक्रम को कवर किया था। उस समय इस प्रकार सुरजन जी का मुझसे एक अभिभावक के तौर पर रिश्ता बन गया। वह मेरा मार्गदर्शन करते। पत्रकारिता का मतलब मैंने उनसे ही जाना। मुझे याद है डीएमए इंडिया ऑनलाइन यूट्यूब चैनल के एक एपिसोड के साक्षात्कार के दौरान उन्होंने कहा था कि “पत्रकारिता कभी निष्पक्ष होकर नहीं की जा सकती। आपको यह तय करना होगा कि आप शोषक के पक्ष में हैं या शोषित के पक्ष में।” उनकी यह बात लोगों को बहुत गहरे तक प्रभावित किया और वे लोग जो पत्रकारिता कर रहे हैं उनका मार्गदर्शन किया। यह वीडियो आज भी यूट्यूब पर उपलब्ध है।

 

वे समय के बड़े पाबंद थे। मुझे याद है वर्ष 2011 में हमने 14 अप्रैल को डॉ. अंबेडकर जयंती पर एक कार्यक्रम रखा था। उन्हें भी निमंत्रण दिया। वह कार्यक्रम में नियत समय के 5 मिनट पहले ही आ गए। इस समय हम तैयारी कर रहे थे। हमें बड़ी शर्मिंदगी हुई। इसी प्रकार वह अपना कोई भी कार्यक्रम तय समय पर ही शुरू कर देते थे। चाहे मेहमान या दर्शक आए या न आए। इस कारण उनके कार्यक्रम में लोग समय पर पहुंच जाते थे। उनसे ही हमने समय का महत्व सीखा और जब भी कार्यक्रम करते थे तो तय समय पर ही प्रारंभ करके तय समय पर खत्म कर देते थे। वे कहा करते थे कि “कार्यक्रम में लेट-लतीफी का मतलब है जो मेहमान समय पर आए हैं उनकी बेइज्जती करना”। वे समानता की विचारधारा को बेहद महत्व देते थे। कोशिश करते थे कि उनके कार्यक्रम में वक्ताओं, मेहमानों में विविधता हो। महिलाओं को वह खास तवज्जो दिया करते थे।

 

इसके बाद छत्तीसगढ़ प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन में मैं जुड़ गया। उनके द्वारा आयोजित सेमिनारों, कार्यक्रमों में बहुत सी बातें जानने-सीखने को मिली।

 

बाद के दिनों में वे अपने लेख संस्मरण आदि अपनी सहयोगी सरिता को बोल-बोलकर लिखवाया करते थे। इस दौरान उनके कैबिन में प्रवेश की मनाही होती है। वह जब भी मिलते तो पूछते संजीव क्या लिख रहे हो, हमेशा समकालीन विषयों पर बात करते थे। धार्मिक कट्टरवादियों और उनकी राजनीति की चर्चा के दौरान वे अक्सर निराश हो जाया करते थे। कहते थे इस देश का क्या होगा ? अथक प्रयास के बाद जो आजादी, समता, समानता और लोकतंत्र मिला है सब खत्म हो जाएगा।

 

वे तुनक मिजाज के भी थे। कई बार ऐसा हुआ कि वे कार्यक्रम के दौरान किसी बात पर नाराज हो जाया करते थे, लेकिन ज्यादातर समय खुशमिजाज ही रहते थे। सबसे अलग-अलग मिलते, सबका ख्याल रखते और हालचाल पूछते हैं। वह कहा भी करते थे कि अभी छत्तीसगढ़ में मैं सबसे सीनियर पत्रकार हूं। उम्र में सबसे बड़ा हूं। छत्तीसगढ़ राज्य अलग होने के बाद छत्तीसगढ़ हिंदी साहित्य सम्मेलन के लगातार 20 सालों तक वे अध्यक्ष चुने गए। सोसायटी अधिनियम के सभी नियमों का कड़ाई से पालन करते थे। संस्था के लेखा-जोखा से लेकर गतिविधियों तक में पारदर्शिता रखते थे। उनकी कोशिश रहती थी कि सभी कार्यक्रमों में हर सदस्यों की भागीदारी हो सके।

 

अंतिम दिनों में वे देशबंधु प्रारंभ होने का इतिहास संस्मरण के रूप में लिख रहे थे। इसकी कड़ियां लगातार देशबंधु में प्रकाशित हो रही थी। “देशबंधु का चौथा खंभा बनने से इनकार” उन के इस सीरीज को पढ़ने से ज्ञात होता है कि किस प्रकार उनके पिताजी स्वर्गीय मायाराम सुरजन जी ने देशबंधु को खड़ा किया और एक ऊंचाई तक पहुंचाया, बगैर अपने सिद्धांतों से समझौता किए। एक समय अविभाजित मध्यप्रदेश में देशबंधु सर्वश्रेष्ठ अखबारों में गिना जाता था। आज भी देशबंधु अपने संपादकीय और वैचारिक पेज के लिए जाना जाता है।

 

उनकी कमी हमेशा खलती रहेगी, उनके जाने के बाद बनी हुई खाई को कोई नहीं भर सकता। हकीकत में वह हमारे मार्गदर्शक थे, अभिभावक थे। उनकी रचनाओं को पढ़ना और समझना उनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी। सादर नमन.

 


©संजीव खुदशाह, रायपुर, छत्तीसगढ़    

लेखक देश में चोटी के दलित लेखकों में शुमार किए जाते हैं और प्रगतिशील विचारक, कवि, कथाकार, समीक्षक, आलोचक एवं पत्रकार के रूप में भी जाने जाते हैं। “सफाई कामगार समुदाय” एवं “आधुनिक भारत में पिछड़ा वर्ग”, “दलित चेतना और कुछ जरुरी सवाल” आपकी चर्चित कृतियों में शामिल है। आपकी किताबों का मराठी, पंजाबी, ओडिया सहित अन्य भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।

लेखक परिचय :- जन्म 12 फरवरी 1973 को बिलासपुर, छत्तीसगढ़ में हुआ। शिक्षा एमए, एलएलबी। आप देश में चोटी के दलित लेखकों में शुमार किए जाते हैं और प्रगतिशील विचारक, कवि, कथाकार, समीक्षक, आलोचक एवं पत्रकार के रूप में भी जाने जाते हैं। आपकी रचनाएं देश की लगभग सभी अग्रणी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकीं हैं। “सफाई कामगार समुदाय” एवं “आधुनिक भारत में पिछड़ा वर्ग”, “दलित चेतना और कुछ जरुरी सवाल” आपकी चर्चित कृतियों में शामिल है। आपकी किताबों का मराठी, पंजाबी, ओडिया सहित अन्य भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। आपकी पहचान मिमिक्री कलाकार और नाट्यकर्मी के रूप में भी स्थापित है। छत्तीसगढ़ हिन्दी साहित्य सम्मेलन से निबंध विधा के लिए पुर्ननवा पुरस्कार सहित आप कई पुरस्‍कार एवं सम्मान से सम्मानित किए जा चुके हैं।

E-mail- sanjeevkhudshah@gmail.com


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