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क्या धरा है कुलनाम में ? भाग – दो | ऑनलाइन बुलेटिन

©के. विक्रम राव, नई दिल्ली

-लेखक इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट (IFWJ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।


 

  पारसियों के उपनाम से बड़ा व्यंग भी उपजता है। जैसे दारुवाला भले ही वह शराब छूता भी न हो। एक कार विक्रेता का नाम बाटलीवाला था। यूं बांग्लाभाषी विप्रों का उपनाम बड़ा विद्वताभरा होता है : बंधोपाध्याय आंग्लाभाषा में विकृत होकर बनर्जी बन गया। इसी भांति मुखर्जी है मुखोपाध्याय, चटर्जी चटोपाध्याय इत्यादि।

 

दक्षिण भारत के विप्रों में समझा जाता है कि यदि उनका पूरा नाम लिख दें तो पत्र में पता लिखने की जरुरत नहीं होती है। उनके पिता, कुल, गांव, जनपद आदि सभी होते हैं। हालांकि नये दौरे में सिर्फ पिता का नाम ही होता है। जाति सूचक उपनाम नहीं।

 

क्या धरा है कुलनाम में ? भाग -1 | ऑनलाइन बुलेटिन

 

यहां सुझाव के तौर पर एक उल्लेख कर दूं। यदि नवजन्में शिशु का काव्यमय नाम चाहिये तो पश्चिम बंगाल की माध्यमिक परीक्षा का परिणाम पत्र पढ़ लें। ”अ” से लेकर ”ह” तक एक से एक उम्दा नाम मिल जायेगे।

 

अब नाम उपनाम की चर्चा पर इतना तो स्मरण रखना चाहिये कि यदि पंसदीदा नाम न हुआ तो व्यक्तित्व का विकास और मनौवैज्ञानिक संतुलन को बहुत हानि होगी, कुंठित होगी। मसलन घुरहूं हुआ तो वह घूरे के आगे नहीं चढ़ पायेगा। कबाड़ ही बटोरेगा। कल्लू होगा तो जितना भी धवल हो, कृष्णवर्ण ही माना जायेगा। इसीलिये हिन्दी

की कहावत में चेतावनी निहित : ” आंख के अंधे, नाम नयनसुख।” कितने ही क्षत्रियों में नाम उत्साहजनक होते थे। उत्तेजक भी। जैसे रिपुदमन, अरिमर्दन, रणविजय, समरबहादुर। भले ही आज तलवार भी न भांज पाये। मात्र कलमवीर हो। इसीलिए संतान के नाम में माता—पिता के उपनाम के साथ रोचकता हो तो विकास भला होगा। द्रुतगामी भी।

 


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