.

मुहब्बतों का ये अंजाम बुरा लगता है | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©भरत मल्होत्रा

परिचय- मुंबई, महाराष्ट्र


 

 

 

किसी के लब पे तेरा नाम बुरा लगता है,

गैर कोई दे तुझे पैगाम बुरा लगता है,

==========================

 

कहा है तुमसे कई बार इशारों में मगर,

आज कहता हूँ सरेआम बुरा लगता है,

==========================

 

खबर है जानते हैं सब तुम्हें शहर में पर,

तेरा सबसे दुआ-सलाम बुरा लगता है,

==========================

 

बीत जाता है दिन उलझनें सुलझाने में,

जब आती है गम की शाम बुरा लगता है,

==========================

 

नहीं कोई दुश्मनी पहले की है जो मुझसे तेरी,

तुम्हें फिर क्यों मेरा हर काम बुरा लगता है,

==========================

 

हमें दिक्कत नहीं तू गैरों को पिलाए अगर,

मिले हमें जो खाली जाम बुरा लगता है,

==========================

 

चार दिन की खुशी, गम उम्र भर का फिर,

मुहब्बतों का ये अंजाम बुरा लगता है,

==========================

 

ये खबर भी पढ़ें:

Ramchandra Basewal of Barwa : बुढ़ापा पेंशन को मेहनत की नेक कमाई नहीं मानते, अपने कपड़े खुद सीते हैं, ऐसी अद्वितीय सोच के धनी है बड़वा के ये 90 वर्षीय रामचंद्र बसेवाल | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन


Back to top button