ये जिंदगी के रास्ते…
©गायकवाड विलास
परिचय- मिलिंद महाविद्यालय लातूर, महाराष्ट्र
कहां कहां घूम रहा है तू बनके मुसाफ़िर,
ये जिंदगी के रास्ते,यहां कब खत्म होते है।
चाहे तो जन्नत है ये जिंदगी,ना चाहे तो मुसीबत,
उस सजाओ या बिगाडो ये सबके कर्मों का खेल है।
सिर्फ तस्वीर बनाकर,उसमें कहां आती है सुन्दरता,
रंगों के बिना हर तस्वीर उजड़े चमन जैसी लगती है।
जन्नत की आरजू कौन नहीं चाहता इस संसार में,
मगर हर किसी के कर्मों में चन्दन सी महक कहां होती है।
बुराई और अच्छाई कभी किसी कोख से जन्म नहीं लेती,
फिर भी कई मां ओ की कोख ही यहां बदनाम है।
जो मिला है वहीं है तेरे लिए अनुपम सौगात,
ये मिली जिंदगी भी किसी सौगात से कम नहीं है।
कहां कहां घूम रहे है तू बनके मुसाफ़िर,
ये जिंदगी के रास्ते,यहां कब खत्म होते है।
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