तू राही अकेला….
©प्रा.गायकवाड विलास
परिचय- मिलिंद महाविद्यालय, लातूर, महाराष्ट्र
तू राही अकेला और रास्ता है तेरा हमसफ़र,
बदले हुए जमाने में अब तू,किसी से कोई आरजू न कर।
जो दर्द दिल का सुनें ऐसा यहां हमसफ़र कौन है,
अकेला आया है तू,यहां तेरा अपना हमदर्द कौन है।
छोड़ दे सच्चाई,देख हर जगह यहां पर बेईमानी की भीड़ है,
सच के संग होता नहीं कारवां,अब तो ये नया दौर है।
अपने होते हुए भी,अकेले ही ये जिंदगी गुज़र रही है,
किस सदी में खोया है तू,यहां तो बेईमानी हंस रही है।
जहां भी देखो तू,यहां हर चेहरा नक़ाब लगाएं बैठा है,
सच है तेरे संग फिर भी तू इस जमाने से क्युं रूठा है।
रंग दुनिया के हजार,मगर तेरा एक ही सच्चाई का रंग है,
अकेले जीएं जा तू ऐसे ही,यहां लहू भी पानी बन गया है।
तू राही अकेला और रास्ता है तेरा हमसफ़र,
बदले हुए जमाने में,अब यहां कोई नहीं है रहबर।
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