.

उषा श्रीवास “वत्स” प्रिय बिटिया | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

(अद्भुत व्यक्तित्व को समर्पित)

 

वक्त की ताज़ा तस्वीर हो तुम,

खुद से ही बनी तकदीर हो तुम।

जमाना क्या सोचेगा फ़िक्र नहीं,

हर राह में चली राहगीर हो तुम।।

 

कईयों को सीखाया राह चलना,

खुद से ही सही लक्ष्य को चुनना।

एक नजीर हो आप जमाने की,

सबको सिखाया बोलना सुनना।।

 

न जाने खुदा की है कैसी रहमत,

मुख पे है आकर्षण गज़ब सुन्दर।

अनुसरण भी करते हैं लाखों लोग,

रूतबा है गज़ब व्यक्तित्व अंदर।।

 

सूर्य का तेज़ है तेरी इन आंखों में,

लाखों आंखों को तुमने चौंधाया।

मिलने को तरसता है बड़ा कारवां,

खुद से प्रभुत्व सबको दिखलाया।

 

तारीफ भी करे क्या कैसे तुम्हारी,

तारीफ ही तारीफ से भरी हुई हो।

शब्द भी कम पड़ जाएंगे यहां पर,

सर से पैर तारीफ से सनी हुई हो।

 

©राज कुमार खाती “मदहोश”

दुर्ग, छत्तीसगढ़, भारत।

 

ये भी पढ़ें :

ठण्ड की सुहानी रात | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन


Back to top button