.

ठण्ड की सुहानी रात | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©अशोक कुमार यादव

परिचय- राष्ट्रीय कवि संगम इकाई के जिलाध्यक्ष, मुंगेली, छत्तीसगढ़.


 

 

प्रकाशमय दिन ढला, मधुरिमा रात्रि हुई।

शीतल हिमकर किरणों की बरसात हुई।।

आलस की निद्रा दुबकर ओढ़ ली रजाई।

धधकती अग्नि की कोहरे ने ली जम्हाई।।

 

मुझे याद आ रही है ठण्ड की सुहानी रात।

बिस्तर में लेटा कर रहा था पत्नी से बात।।

भूल नहीं पाऊंगा कभी पहला मुलाकात।

शहद रात्रि मुझे दी थी प्यार का सौगात।।

 

दिव्यलोक उपवन सदृश सजा था प्रकोष्ठ।

अदृष्ट थरथरा रहे थे कोमल कमल ओष्ठ।।

अवगुंठिका उठा देख लिया स्वर्णिम कोष्ठ।

अंतर्मन में जाग उठी कामना उभयनिष्ठ।।

 

सुप्त कलियां खिल गई देखकर मधुप को।

दीवाना बार-बार निहारने लगा रंग-रुप को।।

मकरंद का आनंद ले रहा था जैसे धूप को।

संस्पर्श किया सुवासित सौंदर्य अनूप को।।

 

निशीथ में नींद आयी अंग-अंग में ताजगी।

वर्षों का प्यासा दिल में छा गई दीवानगी।।

अप्सरा, विश्व सुंदरी, रात की रानी सर्वांगी।

श्वेत अमृत प्रीत की वर्षा करो तुम सादगी।।

 

ये भी पढ़ें:

अनुसूचित जाति का आरक्षण 16 प्रतिशत किए जाने को लेकर प्रगतिशील सतनामी समाज ने रायपुर कलेक्टर को सौंपा मांगों का ज्ञापन | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

अब तो पतझड़ में जीने की, मेरी आदत हो गई | ऑनलाइन बुलेटिन
READ

Related Articles

Back to top button