आह्वान…

©पद्म मुख पंडा
आओ, चलो, चलें उपवन में, भौरों संग गुंजार करें!
फूलों के संग, बतियाएं, तितली से मनुहार करें।
चली बसन्ती पवन नशीली आंखों को भरमाती
अमरैया में धूप झांकती, रुत आई मदमाती।
चलो सखि, झूला झूलें, विटपों का श्रृंगार करें,
उनके दामन में, रंग लगाकर, दिल से उनको प्यार करें।
आओ चलो चलें उपवन में भौरों संग गुंजार करें।
कूक सुनाती कोयलिया है, लगती कैसी मतवाली,
मंद मंद चल रहा पवन है, झूम रही डाली डाली
अलि कलियों को रहे चूम, देख रहा उनको माली।
प्रकृति का है रूप अनोखा, बनी रहे यह खुश हाली।
चिं चिं करती गौरैया को दाने देकर दुलार करें
आओ, चलो चलें उपवन में, भौरों संग गुंजार करें।
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