जहां दर्द आभुषण बने है…
©प्रा.गायकवाड विलास
परिचय- मिलिंद महाविद्यालय, लातूर, महाराष्ट्र
दर्द आभुषण बने है जीवन में,
ख़्वाब जलते रहते है सदा नयनों में।
ये राहें जिंदगी की कभी होती नहीं आसां,
तो कैसे कोई खुश रहे अपने संसार में।
हाथों में काम नहीं,रोटी की चिंता सताएं मनको,
मंहगाई,बेरोजगारी पर हल कैसे हम निकालें।
रोजमर्रा की जिंदगी भी यहां बनी है इम्तिहान,
ऐसे हालातों में ख़्वाब बने है रोटी के निवाले।
देखो भाग रही है ये जिंदगी हर दिन चारों दिशाओं में,
सभी अरमान जल रहे है हमारे इस आंगन में।
अश्कों की बारिश में भीग रहे हम हर दिन यहां पर,
दर्द आभुषण बने है और जारी है हमारा सफ़र।
कौन सूने फरियाद,कौन है यहां पे फरिश्ता,
बदले हुए संसार में सभी अपनी ही धुन में जी रहे है।
बेईमानी की बहती हवाओं में कौन किसी का दुखदर्द बांटे,
अब इस नए दौर में यहां अपने भी अंजान बन बैठे है।
दर्द आभुषण बने है,कोई भी मरहम नहीं है,
दुखदर्द भरी दास्तां जैसे कोई कहानी बनी है।
ऐसे में ही चल रही है जिंदगी आहिस्ता-आहिस्ता,
कौन सूने गमों की दास्तां,जहां दर्द आभुषण बने है – – – दर्द आभुषण बने है।
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