जहां पर है ये आशाएं कम…
©गायकवाड विलास
परिचय- मिलिंद महाविद्यालय लातूर, महाराष्ट्र
कुछ ख्वाईशें दफ़न करके,हमें यहां पर चलना है,
कभी ख़ुशी कभी ग़म दिल में लिए हमें यहां हंसना है।
कई आते है मोड़ नए नए जिंदगी के इस राहों पर,
इम्तिहान है ये जिंदगी,रखो तुम अपनी बाज की नज़र।
गांव भी बने उदास,वहां भी पहले जैसी रौनकें-ए-बहार नहीं है,
शहर की हवाओं ने उस गांव का भी सुकून छीन लिया है।
बेईमानी के जमाने में ये कैसा बदला बदला सा आलम है,
ये तो जलती हुई ईमानदारी का चारों ओर फैला मातम है।
तकदीर का सूरज देखा मत करो अपनी हाथों की लकीरों में,
कभी देखो वो लकीरें तुम,उसी में सफलता की राह छुपी होती है।
भाग मत इतना ऐ इन्सा,ये राहें कभी ख़त्म नहीं होती है,
जहां पर है ये आशाएं कम,वही पे ये जिंदगी मुस्कुराती है।
कुछ ख्वाहिशें दफ़न करके ही हमें यहां पर चलना है,
महलों में भी छाई है उदासी,आशाओं का यहां अंत कब होता है।
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