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ना जाने कहां निकला है…

©गायकवाड विलास 

परिचय- लातूर, महाराष्ट्र


 

ज्ञान की रोशनी में भी इस संसार में,

ये कैसा अंधेरा सा छाया हुआ है।

ज्ञान लेकर भी ये इन्सान देखो कैसे,

उसी बुराईयों के रास्तों पर चल रहा है।

 

इधर उधर कोई यहां देखता नहीं,

अहंकार ये कैसा सारे जग में फैला है।

धन की आरजू लिए अपने मन में,

देखो अपना भी यहां कैसे अजनबी बना है।

 

खुशियां पाकर भी खुशी नहीं दिलों में,

औरों का महल देखकर ही वो परेशान है।

चाहतों का अंत नहीं कभी इस दुनिया में,

उसी चाहतों में ये सारा जमाना उलझा हुआ है।

 

बदली नीतियां बिक गया ज़मीर,

बोले कबीरा,यही बोले वो फ़कीर।

मत भाग इतना,कहां तक भागेगा तू,

मिट जायेगी जिंदगी,क्योंकि रास्ते है बहोत दूर।

 

ज्ञान के रोशनी में भी इस संसार में,

ये कैसा अंधेरा सा छाया हुआ है।

वो ज्ञान भी बदल नहीं पाया इन्सानों की नीति,

ऐसा उन्नति भरा नया दौर ना जाने कहां निकला है – – – ना जाने कहां निकला है।

 

Gaikwad-Vilas-Latur-Maharashtra
गायकवाड विलास

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