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मजबूर क्यों | Onlinebulletin

©हरीश पांडल, बिलासपुर, छत्तीसगढ़


 

 

विचार क्रांति

सदियों से जिंदा था जिंदा है

और जिंदा रहेगा

एक छोटे-से बच्चे से उसकी

रोटी छीन कर देखो

अगर वह बच्चा एक टुकड़ा

रोटी के लिए रोता है

बिलखता है, इसका मतलब

उसमें क्रांति का

उद्भव हो गया है

बचपन का उसका रोटी के लिए

रोना आंदोलन का

आगाज है,

आज वह बच्चा

बड़ा हो गया है

, बहुजन का

रुप एख्तियार कर चुका है

आज उसके सभी

हक और अधिकार उससे

छीने जा रहे हैं?

बचपन में एक टुकड़ा रोटी

के लिए

मचलने वाला वह बच्चा

युवा होकर

खामोश है, लाचार है,

मजबूर है

अफसोस इस बात

का है कि ? आज वह

किस मदहोशी में

किस बेहोशी में

वह चूर है??

किसलिए वह

मजबूर है ?

इसी सोच की वजह से

बहुजन समाज

संपूर्ण आजादी से

दूर है,

संपूर्ण आजादी से दूर है ….


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