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संगीतायन | ऑनलाइन बुलेटिन

©अशोक कुमार यादव ‘शिक्षादूत’, मुंगेली, छत्तीसगढ़


 

स्वर्ग की अप्सरा विश्व सुंदरी संगीता।

प्रेम मोहिनी मन अधिवासिनी वंदिता।।

फुलवारी के रंग-बिरंगे कुसुम समर्पित।

सुगंधित हवाओं में पुष्पासार अर्पित।।

परम पूजनीय लक्ष्मी स्वरूपा सदन।

दिव्य प्रकाशवान दृश्य कोमल बदन।।

हे!अर्धांगिनी संजीवनी बूटी प्रदायिनी।

अगाध प्रेम ही प्रेम वर्षण जीवनसंगिनी।।

पति परमेश्वर मान मेरी करती हो पूजा।

मेरी जनमोंजनम के साथी मृदु कुंजा।।

मंगल दात्री शुभ-लाभ सुख स्वामिनी।

वनिता की मल्लिका रूपवती सुहागिनी।।

प्रियवर अशोक स्वामी के मधु मनोरमा।

माधुर्य,कांता,सखी भाव भूषण उपमा।।

तन्मयता राग रंग सगुण भक्ति भावना।

दीर्घ जीवित रहे प्राणप्रिय करती कामना।।

प्रातः वंदन अभिनंदन निर्जला उपवास।

पूर्ण निष्ठा चाह मन लेकर अटूट विश्वास।।

पतिव्रता वधू मेरे सातों जनम के साथी।

धर्मपत्नी संस्कृति सभ्यता के प्राण वीथी।।

स्थिर स्वभाव कोमल हृदय उत्तम विचार।

सर्वगुण संपन्न असंख्य में है एक संसार।।

पथ प्रदर्शिका नवीन नेक पंथ अन्वेषिणी।

नैतिक गुण मन वचन कर्म धर्म कल्याणी।।

आदर्श सुखमय जीवन का अनुभव आधार।

सस्नेह करुणा दरिया दिली का महा भंडार।।

आंगन की तुलसी बन घर को करती सुवास।

निकेतन की रानी हो नीरीगता ऐश्वर्य आश।।

दो दिल एक जान जैसे बंधे पतंग और डोर।

नील गगन में उड़ जाएं देखते रहे ओर-छोर।।

बंधन अटूट है जीवन की पुनर्जन्म का नाता।

खुशहाल जिंदगी की अनुग्रह करना विधाता।।

परिवारिक रिश्ते-नातों का खूब रखती ख्याल।

मान-सम्मान की खुशबू बिखेर करती कमाल।।

सास-ससुर की सेवा को ईश्वर की सेवा मानती।

सत्य, असत्य, सुख और दुःख को पहचानती।।

घर को बनाई हो मधुबन झूम रहे सभी खुशी से।

गीत और कविता का बसेरा नृत्य करें सुखी से।।

हे! परमपिता परमेश्वर आयुष्मती का वरदान दो।

सुख-समृद्धि आनंद मंगल समाज में सम्मान दो।।


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