गुरुजी गियान देवैया | Newsforum
©सरस्वती राजेश साहू, बिलासपुर, छत्तीसगढ़
गुरु के पांव पखार के, लेवव आसीरबाद
गुरुजी गियान देवैया, करथे जीनगी आबाद
सिरजावत हे चेला मन ल, बांटत सुघ्घर गियान
बनही जीनगी सब चेला के, देवव अंतस ले धियान
रद्दा देखावत गुरुजी सबला, ठाढ़हे आघु रद्दा
गिर झन जावय कोनो कहिके, पाटत हे गियान ले गड्ढा
सुरुज बरोबर ओकर गियान ह, करत हे जग अंजोर
तहाँ निकल आथे जीनगी म, नवा डहर के भोर
अड़हा मन बिदवान बने हे, गुरु कीरपा ल पाके
बड़ उपकार करे हे बिधाता, दुनिया म गुरु बनाके
ये धरती म ठाढ़हे हावय, बिधाता, गुरु के रूप
छैइँहा देवत ये दुनिया म, छाँटत हावय धूप
आसीरबाद बने रहय, अऊ गुरु के गियान
अंधियारी हर दूर फेंकावय, होवय नवा बिहान …