दिवाली की एक याद…
©नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़
परिचय- मुंबई, आईटी टीम लीडर
हम सभी बच्चे एक घरौंदा बनाते थे।
मिट्टी के खिलौने से घरौंदा सजाते थे।
कुछ रंग और कागज़ से रंगीन बनाना,
मिर्ची बल्ब से फिर घरौंदे को सजाना।
रात होने का करते बेसब्री से इंतज़ार,
दीया और पटाखों संग लुटाते प्यार।
समय ने करवट बदला और रूप बदल गया,
ज़िम्मेदारी तले अपना बचपन ढल गया।
हर रोज़ एक दीया की तरह जलते हैं,
दर्द और सितम पटाखे बन उभरते हैं।
खुशियों का आंगन फिर वही मिल जाए।
बीता हुआ कल काश फिर लौट आए।
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