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और गांव में हर कोई | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©गायकवाड विलास

परिचय- लातूर, महाराष्ट्र


 

भीगी हुई पलकें गांव तेरी याद में,

आज है हम यहां दूर कहीं अंजान शहर में।

युंही छोड़ गए मजबूरी में हम अपना गांव,

रोटी का ख्वाब लिए चलें हम उस शहर में।

 

ये नई उन्नति और क्रांति रास नहीं आई,

गरीबों के आंगन की खुशियां ही छीन गई।

रोजगार हुए सभी गांव-गांव में कम,

इसीलिए हमें अपना गांव छोड़ने की नौबत आई।

 

घर की दीवारों के अंदर है वो बूढ़े मां-बाप,

उसी आंगन में भी अब सब सुना सुना है।

दूर हुए वो अपने भी रोटी की तलाश में,

अब रह रहकर हम भी उन्हीं के यादों में अश्क बहाते है।

 

उसी गांव की यादों में जिंदगी गुज़र गई,

अब वो दीवारें भी अजनबी जैसी लगती है।

बूढ़े मां-बाप की आंखें भी मिट गई

इंतज़ार में,

उजड़ा हुआ घर आंगन अब बसा हुआ है भीगे नैनों में।

 

इस जिंदगी ने छीन लिया सभी अपनों का साथ,

उसी रोटी के लिए हम कहां से कहां आ गए।

ये जिंदगी नहीं है इतनी भी आसान यहां पर,

यहां हर दिन इम्तिहान है ये जिंदगी का सफ़र।

 

ऐ,गांव तेरी कमी आज भी महसूस करते है हम,

सभी एक-दूसरे से मिलते थे वहां हरदम।

यहां हर चेहरा देखो कैसे अंजान होकर बैठा है,

और गांव में हर कोई अपना अपना सा लगता है।

 

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