बाबा का मूकक्रदंन …
©डॉ. संतराम आर्य, वरिष्ठ साहित्यकार, नई दिल्ली
परिचय : जन्म 14 फरवरी, 1938, रोहतक।
सपने में कल बाबा आए टपक रहे थे आंसू
बोले क्या तुम नहीं जानते मैं रोता हूँ क्यूं।
मैंने कहा, मैं नहीं जानता इन अश्कों का नाता
बोले, मूर्ख तुम कैसे जानोगे इन दर्दों की भाषा।
नमन किया फिर मैंने कहा कुछ तो राह बता दो
बढ़ना होगा कैसे आगे थोड़ा सा समझा दो।
बोले संघर्ष जारी रखना जल्दी पलटेगा पासा
विश्वास में सबको लेना होगा, पूरी होगी अभिलाषा।
मैं संघर्ष, शिक्षा के साथ कारवां तुम सब तक ले आया
लानत होगी तुम सबको जो पीछे को पहुंचाया।
मैं एक अकेला टकरा कर सब देने का प्रयास किया
बहुत दिया कुछ रह गया बाकी
ना तुमनें सब्र से काम लिया।
तू सर पर ढोता मैला, सड़ा टपकता मैला
तेरा तन मन हो गया मैल
आंदोलन की लहर चली तू फिर भी
नही संभला,
तू खुद भी समझ ओरों को समझा दे
फिर वक्त कभी नहीं आएगा
तन कर मनुवादी बैठे हैं
तू हाथ-पांव तुड़वाएगा
कुत्ते की ज्यों मरना होगा
कुछ भी नहीं कर पाएगा।
छोटी जाति मूलनिवासी सबको साथ में लगा जरूर
फिर मिट्टी चाटेगा पाखंडी एक दिन ऐसा आएगा
तू ही देश का शासक होगा और भारत बुद्ध बन जाएगा।
एक चमड़ा ढोता धोता है जूते से पांव सुरक्षित
रखता
उसी के खेत में रहे रात दिन एक घड़ी नहीं सोने देता
हमरी जोर, बेटी पर नजर ताकता
और हमसे नफरत करता।
एक तोड़ता पत्थर, झोंकता है भट्टियां
और झुलसता है सूरज उसकी चमड़ी रोटियां।
और पाखंडी जाता है कल्ब में नहाता है कल्ब में
हमारे ही दम पर खाता है कल्ब में।
आगोश अप्सरा की पाता है कल्ब में
सारी रात शराब की खुलती हैं पेटियां
मस्त ऐयाशी करता है तेरी बिकती हैं बेटियां।
जो घाव बना मेरे भीतर वही तुम्हें बतलाया
समता के अधिकार तुम्हारे मैं पूरी नहीं कर पाया
भविष्य मेरा लगा दांव पर समाज कतई नहीं शर्माया
ये अश्क मेरे हैं मूकक्रंदन तेरे शीतल सुख की छाया।
मैं हिम्मत का हिमायती करके देखो हिम्मत
आजाद किया है मैंने तुमको पाना सीखो ईज्जत।
अब जो काम रहा है अधूरा तुम सबको करना है पूरा
यदि तेरे मुझे पुकारा मैं नहीं आऊंगा दोबारा
अब संगठन ही एक सहारा।
‘सन्तराम’ नहीं घबराना तू पकड़ेगी नाव किनारा
जय भारत देश हमारा, जय भारत देश हमारा।
जय भारत देश हमारा।
गीत, रचना, कविता, कहानी, गजल, चुटकुला, लेख आदि सीधे भेजने के लिए व्हाट्सएप करें : – +91 8305824440