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अंतस मन की पुकार | ऑनलाइन बुलेटिन

©नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़

परिचय– मुंबई, आईटी सॉफ्टवेयर इंजीनियर.


 

लब पे आए बार-बार।

अंतस मन की पुकार।

 

आचरण सारे खो गए,

परिंदे बड़े होकर उड़ गए।

तन्हाई अब सताती है,

बुढ़ापा रोग बुलाती है।

 

पेड़ लगाया पर फल न आया,

फल आया तो बेस्वाद लाया।

अकेले भटक रहे यहां-वहां,

बच्चों का बचपन खोया कहां।

 

मुंडेर बैठकर देखूं आस,

न आए तो मन हो निराश,

अंतिम संस्कार में आएगा,

धन-दौलत सब ले जाएगा।

 

डंडा ही अब सहारा,

कोई नहीं है हमारा।

बुढ़ापा देने लगी दस्तक,

लगेगा एक दिन किनारा।

लगेगा एक दिन किनारा।


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