चाबत हावय …
©राजेश कुमार मधुकर (शिक्षक), कोरबा, छत्तीसगढ़
पानी देखके मन हर कहिथे
नहइया मन कतका सहिथे
सोचत मोर मन हर रहिथे
जाड के दिन आवत हावय
देख तो पानी चाबत हावय
पानी देखके कांपगे पोटा
नहाये जाथे धर के लोटा
चालू होगे हे ठंडा के कोटा
तभो नहायबर जावत हावय
देख तो पानी चाबत हावय
जाड़ भागही सोचत रहिथव
नहा डरेवहव सबला कहिथव
रोज ये दुख ल मैहर सहिथव
पानी मोला नई भावत हावय
देख तो पानी चाबत हावय
सुतत उठत एके धियान हे
नहाले कह बाटत गियान हे
नई नहात लईका सियान हे
नहायेबर सब लुकात हावय
देख तो पानी चाबत हावय
हाथ गोड़ के देख तो हाल
घुमाई फिराई के बदले चाल
पानी देखके खड़े होथे बाल
मुँह कान हर फाटत हावय
देख तो पानी चाबत हावय …