आओ चलें….
©गायकवाड विलास
परिचय- मिलिंद महाविद्यालय, लातूर, महाराष्ट्र
आओ चलें गांव की ओर ,
वहां की मिट्टी में ममता की खुशबू है।
सीधे सादे लोग और वाणी में मिठास,
जैसे वहां मन मन से निर्मल गंगा बहती है।
आओ चलें गांव की ओर ,
जहां गलियां गलियां खिलखिलाती है।
ना है आपस में बैर कोई इन्सानों के मन में,
और हर एक चेहरे पर छाई हुई ख़ुशी है।
आओ चलें गांव की ओर ,
जहां मानवता भरी नीतियां अभी बाकी है।
आज भी मिल जुलकर सभी मनाते है हर त्योहार वहां,
और एक दूसरे का सुख-दुख वहां बांट लेते है।
आओ चलें गांव की ओर ,
जहां हर आंगन में प्रेम की नदियां बहती है।
जो दिलों दिलों को जोड़कर निभाती है भाईचारा,
ऐसी वो गांव की रीत रिश्तों का मोल सिखाती है।
आओ चलें गांव की ओर ,
जहां पेड़ पौधे हरियाली भी सदा खिलखिलाती है।
ऐसी होती है गांव की मिट्टी अनमोल प्यारी,
उसी मिट्टी की गोद में हम सब भारतीय यहां खुशहाल रहते है।
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