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जल – जीवन और … | ऑनलाइन बुलेटिन

©इंदु रवि

परिचय– गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश


 

 

होली में ना खुशियों का रंग है।

होली सिर्फ शील का भंग है।

कुमार्गी, सिर्फ रहे ताक में

मौका मिलते शिकार बनाना है

जिससे रहते थे कोसों दूर

उसे अंग – अंग रंग लगाना है।

ना जाने कितनी महिला आहत होगी।

कितने पुरुषों की भी शामत होगी

कितने रिश्ते हास बनेंगे

सब में नारी का उपहास करेंगे।

अपनी शील ना बचा पाएगी

नारी कभी,

क्योंकि एक नारी के जलने पर

जब रास करेंगे।

नवरात्र में देवी की पूजा करेंगे।

वही मार्च में देवी को जला हुडदंग करेंगे।

आधा हिस्सा जागो, रूढ़िवादी

पुरुषों और समाज के षड्यंत्र के

पीछे मत भागो।

खुशियां प्राप्त करने के कई तरीके हैं

प्रेम से रहना, मिल जुल कर रहना।

एक नारी को जिंदा जला

खुशियां क्यों प्राप्त करना ?

नारी हैं हम, नारियों के लिए

प्रश्न हम ही खड़ा करेंगे।

अपनी अज्ञानता के कारण

परुष पुरुषों को क्यों बड़ा करेंगे।

कहो नारियां सब एक स्वर में

विद्वान पुरुष भी तुम्हारे साथ हैं

अब होलिका नहीं जलाना है

ना होली हमें मनाना है।

होली को मारो गोली।

होली अब बहुत हो ली

अब अपना अस्तित्व बचाएंगे।

हम होली नहीं मनाएंगे।

बचाना तो है हमें पेड़ और जल भी

यही सुखमय करेगा जीवन

आज और कल भी।

आओ प्रण करें पर्यावरण और

पानी बचाएं।

जन – जन में फैले

अंधविश्वास को भगाएं।

ना कभी दूसरों को सताएं।

चहुं ओर समता के फूल बरसाएं।

जो सोया है अज्ञानता के नींद ,

घर- घर जाकर उसे भी जगाएं।

जितना जलाना है,

ज्ञान का दीपक ही जलाएं।

ध्यान रखना किसी का

दिल न जलाएं।।

किसी के सम्मान पे कभी,

ना आंच आए -2


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