तेरा प्यार कहीं न पाया माँ…
©नीरज यादव
कभी सोचता हूँ अक्सर बैठ के,
क्यों तुझसे दूर आया माँ ?
गाँव की गमक,
क्यों न मुझको भाया माँ ?
ऐसा क्या था शहर में?
कि मैं शहर की ओर कदम बढ़ाया माँ ?
जब मैं गाँव को दिल से निकाला था,
क्यों न मुझको मारा?क्यों न समझाया माँ ?
‘शहर’ केवल एक भीड़ है,
उस भीड़ ने अकेलेपन का महसूस कराया माँ।
माँ, तेरे प्यार का कोई मोल नहीं,
लोगों की क्रुरता ने मुझे सिखाया माँ।
तेरी ममता की खातिर,
देख मैं लौट आया माँ ।
बड़ी ज़ोर से भूख लगी है,
बता, तुने क्या बनाया माँ ?
अपने हाथों से ही खिला दे मुझे,
लगता है सालों से कुछ न खाया माँ।
दुनिया बहुत घूम ली मैंने,
मगर तेरा प्यार कहीं न पाया माँ।
🔥 सोशल मीडिया
फेसबुक पेज में जुड़ने के लिए क्लिक करें
https://www.facebook.com/onlinebulletindotin
व्हाट्सएप ग्रुप में जुड़ने के लिए क्लिक करें
https://chat.whatsapp.com/Cj1zs5ocireHsUffFGTSld
ONLINE bulletin dot in में प्रतिदिन सरकारी नौकरी, सरकारी योजनाएं, परीक्षा पाठ्यक्रम, समय सारिणी, परीक्षा परिणाम, सम-सामयिक विषयों और कई अन्य के लिए onlinebulletin.in का अनुसरण करते रहें.
🔥 अगर आपका कोई भाई, दोस्त या रिलेटिव ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन में प्रकाशित किए जाने वाले सरकारी भर्तियों के लिए एलिजिबल है तो उन तक onlinebulletin.in को जरूर पहुंचाएं।