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तेरा प्यार कहीं न पाया माँ…

©नीरज यादव

परिचय- चम्पारण, बिहार.


 

 

कभी सोचता हूँ अक्सर बैठ के,

क्यों तुझसे दूर आया माँ ?

गाँव की गमक,

क्यों न मुझको भाया माँ ?

 

ऐसा क्या था शहर में?

कि मैं शहर की ओर कदम बढ़ाया  माँ ?

जब मैं गाँव को दिल से निकाला था,

क्यों न मुझको मारा?क्यों न समझाया माँ ?

 

‘शहर’ केवल एक भीड़ है,

उस भीड़ ने अकेलेपन का महसूस कराया माँ।

माँ, तेरे प्यार का कोई मोल नहीं,

लोगों की क्रुरता ने मुझे सिखाया माँ।

 

तेरी ममता की खातिर,

देख मैं लौट आया माँ ।

बड़ी ज़ोर से भूख लगी है,

बता, तुने क्या बनाया माँ ?

 

अपने हाथों से ही खिला दे मुझे,

लगता है सालों से कुछ न खाया माँ।

दुनिया बहुत घूम ली मैंने,

मगर तेरा प्यार कहीं न पाया माँ।

 

Couldn't find your love anywhere mother...
नीरज यादव

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