एक किन्नर की कहानी….
©आर.वी.टीना
ना नर हूं, ना नारी हूं फिर भी हूं तो इंसान ही,
ना मां हूं,ना बाप हूं पर है मेरे संतान भी
ऊंचा कुल नहीं, ना कोई जात है,
पर हां, है मेरा एक समाज भी,
देखकर हमारे चेहरे के हाव भाव,
तुम्हें हंसी आ जाती,
पर भाव भंगिमाएं तो है तुम्हारे भी,
बेशक कोई हमें अच्छी नजरों से ना देखता,
मगर जिस बेटी की तुम इज्जत लूटे,
उसमें एक बेटी थी हमारी भी,
ये जो रूप और ज़िन्दगी है हमारी,
हमने तो नहीं चाहा था,
पर मजबूर है क्योंकि यही जीवन है किस्मत हमारी,
लग जाती है हमारी दुआ भी, बस कोई इज्जत करे हमारी,
अगर कोई नीचा दिखाए हमें,
उठाए उंगली हमारी इस दो रूप वाली ज़िन्दगी पर,
और दे दे हम बददुआ तो कहते है,
ये किन्नर होते ऐसे ही, जो ना देख पाए खुशियां हमारी,
अरे!तुम्हारी खुशियां खुशियां है, तुम्हारे दर्द, दर्द,
कभी जानना भी चाहा हमें क्या है व्यथा हमारी,
जब किसी मां की गोद सूनी रहे तो लेती दुआएं हमारी,
जो लग जाए नजर लल्ला को तो काला टीका हमसे लगवाती,
सोचो हम कितना सहते है तुम्हारे ताने,
मगर फिर भी दिल बैर नहीं हमारे,
एक मां की तरह ममता है हमारे अंदर और बाप के जैसे छांव,
क्या हुआ जो पहचान किन्नर की है,
पर ये भी तो देखो ज़िन्दगी हमारी भी है।।
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