अपराधी | ऑनलाइन बुलेटिन
©अशोक कुमार यादव
परिचय– मुंगेली, छत्तीसगढ़.
मैं पहले कुशाग्र मानव था,
लोगों ने बनाया मुझे पशु।
ईर्ष्या, द्वेष, जाति भेदभाव,
देख मंजर निकला आंसू।।
भ्रष्टाचार रूपी दानव हंसा,
देख मेरी गरीबी, विपत्ति।
तुम हो बहुत प्रवीण इंसान,
नहीं है तुम्हारे पास संपत्ति।।
तू कभी जीत ना पाएगा जंग,
जब तक नहीं दोगे न्यौछावर।
मिल बांटकर खाएंगे पद को,
हमारे पास है असीमित पावर।।
क्रोध में आकर मारा भ्रष्टता को,
मेरे हाथों में लग गई हथकड़ी।
कटघरा में खड़ा हूं कैदी बनकर,
सवाल बरस रहे थे घड़ी-घड़ी।।
क्यों मारा तुमने दुराचारिता को,
बिना इसके ना कोई काम बने।
झूठे गवाह खड़े हैं दरवाजा पीछे,
निर्दोष साबित कर दूं खड़े-खड़े।।