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दिहाड़ी……

©अनिल बिड़लान

परिचय-कुरूक्षेत्र हरियाणा

 

 

ले खुदाली तांसला

मैं कमाने जाऊँगा

मजदूर दिवस मनाओ हे!भरपेट वालों

छोड़ी दिहाड़ी तो मैं भूखा मर जाऊँगा

करके दिहाड़ी मजदूर दिवस मनाऊँगा!

 

लगते खूब हर वर्ष नारे

कुछ हाथ न आया हमारे

बढ़ती महंगाई पर बढ़ा न श्रम का मोल

छोड़ी दिहाड़ी तो मैं भूखा मर जाऊँगा

करके दिहाड़ी मजदूर दिवस मनाऊँगा!

 

विकास पथ पर देश हमारा

खून पसीने से तर तन हमारा

सूखा पसीना मेरा देश थम जाएगा

छोड़ी दिहाड़ी तो मैं भूखा मर जाऊँगा

करके दिहाड़ी मजदूर दिवस मनाऊँगा!

 

कौन मानता योगदान मेरा नवनिर्माण में

मजदूर दिवस मनाने नेता खड़ा मैदान में

कोरी कल्पित बातों से क्या पेट भर जाएगा

छोड़ी दिहाड़ी तो मैं भूखा मर जाऊँगा

करके दिहाड़ी मजदूर दिवस मनाऊँगा!

 

खून चूस चूस कर मेरा भरी लोगों ने तिजोरी

कर बँधुआ मजदूरी दी नहीं धनिको ने फूटी कौड़ी

किसी में हैं हिम्मत मेरा हिसाब-किताब करवाएगा

छोड़ी दिहाड़ी तो मैं भूखा मर जाऊँगा

करके दिहाड़ी मजदूर दिवस मनाऊँगा!

 

देखते बाट बच्चे हर शाम को मेरी

पापा करेंगे आज इच्छा पूरी मेरी

क्या कोई खिलौना मैं खरीद पाऊंँगा

छोड़ी दिहाड़ी तो मैं भूखा मर जाऊँगा

करके दिहाड़ी मजदूर दिवस मनाऊँगा!

 

भला हो कवियों का भी मेरा मुद्दा उठा लेते है

वर्षभर में एक दिन लिखकर नाम कमा लेते है

क्या मैं इनकी लेखनी से अमर हो जाऊँगा

छोड़ी दिहाड़ी तो मैं भूखा मर जाऊँगा

करके दिहाड़ी मजदूर दिवस मनाऊँगा!


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