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नमन…

©कुमार अविनाश केसर

परिचय- मुजफ्फरपुर, बिहार


 

बनकर विश्वपा तू, विश्व की

रक्षा निरंतर कर रही।

धर रूप शक्ति का सदा

तू ओज, बल है भर रही।

तेरी नदी सदानीरा है।

तेरा हर चन्दन उपवन……

हर बार नमन, हर बार नमन।

 

उनचास मरूत तेरी साँसों की

याद दिलाया करते हैं।

सरस सुवासित लहरों से

हमें प्राण पिलाया करते हैं।

तेरे अंगों के रंग विमल,

हैं शशि के जैसी रजत किरण।

हर बार नमन, हर बार नमन

 

तेरी अलकों की छाया से

मोती-से कुछ झरते हैं।

जो धरापुत्र के हृदय में

खुशियों के ख़जाने भरते हैं।

हृदय जुड़ा देते हैं छत्रप

के नीचे के श्यामल घन।

हर बार नमन, हर बार नमन।

 

मन को बरबस आकर्षित कर

चौंकाया करता नीलछत्र!

शशि की छाया में शशिनी की

मुस्कान सरस का लज्जा-सत्र।

अवलोक तुम्हारा प्रतिबिंब,

मानस में होता स्फुरण।

हर बार नमन, हर बार नमन।

 

तेरे सुरभित पुष्प नवल,

हममें नवजीवन भरते हैं।

जीवन के श्रम से कलान्त पथिक

की क्लान्ति कातर हरते हैं।

हरा-भरा-सा दिखता है-

तेरे जन-गण का सुंदर मन।

शत बार नमन, शत बार नमन।

 

शत बार नमन, नंदन, उपवन ।

हम तेरे पुष्प दुलारे हैं।

ये नदियाँ सागर नभ अपार

अपनी आँखों के तारे हैं।

तेरे चित्र-विचित्र समर्पण!

मेरे उर के स्पंदन!

हर बार नमन, हर बार नमन

 

naman
कुमार अविनाश केसर

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