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बेटी तेरे सुख का सामान लायी हूं | ऑनलाइन बुलेटिन

©उषा श्रीवास

परिचय– बिलासपुर छत्तीसगढ़


 

 

बेटी तेरे हिस्से का सिंदूर मांगकर मैं लायी हूं,

लिखा किस्मत में तेरे वो वर ढूंढकर लायी हूं।

 

दिल का टुकड़ा है तू मेरा,

पर मेरी गुड़िया तेरी विदाई का संकल्प कर आयी हूं।

 

तुझपे सजे वो लाल जोड़ा घर लायी हूं,

बेटी तेरे लिए आज मैं वर लायी हूं।

 

जिगर का टुकड़ा है तू मेरा,

आंखे रोयीं हैं पर होठों पर मुस्कान लायी हूं।

 

दिल बैठा है पर आंखों में ख्वाब लायी हूं,

छाया है तू मेरी पर मैं दूसरा अक्श लायी हूं।

 

कहलाती है बेटी धन पराया क्यों?

बेटी दर दर भटककर ही तो तुझे पायी हूं।

 

तेरे जाने पर हो जायेगा सूना मेरा आंगन,

हो जा तैयार तेरे सुख का सामान लायी हूं।

 

कर ले स्वीकार तेरी आंखों की लाज,

और अपनी आंचल का मान लायी हूं।।

 


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