बेटी …

©राजेश कुमार मधुकर (शिक्षक), कोरबा, छत्तीसगढ़
बेटी जन्म जब लेथे तब घर म लक्ष्मी आथे
दाई-ददा के दुख-पीरा सब्बो ल बिसराथे
नानकुन ले जेहर समझदारी दिखाथे
जेकर मीठ गोठ हर सब कोई ल भाथे
अइसे संस्कारी लईका ल बेटी कहिथे
थोरकिन बड़े होते जिम्मेदारी हर आ जाथे
पढ़ई-लिखई संग काम बुता हर आ जाथे
छोटे लइका हर देखते देखते बड़े हो जाथे
जेकर किलकारी म घर आँगन भर जाथे
अइसे सुखमैतीन परी ल बेटी कहिथे
स्कूल आउ घर ओकर दुनियाँ बन जाथे
जेति जाथे वोती खुशियाँ ल बगराथे
नानकन खुशी घलो ल सबला बताथे
जम्मों जिनिस जानत हव अइसे जताथे
अइसे जतन करईया ल बेटी कहिथे
घर म पहुना आथे त पहली पानी देथे
दौड़त दौड़त जाके उकर बोझा ल लेलेथे
डोकरी दाई कस हली भली पूछे ल लग जथे
ओला देखके पहुना मन एके बात ल कहिथे
अइसे दुलौरिन लईका ल बेटी कहिथे
ससुरार म जाके घर कर मान बढ़ाथे
छोटे लईका सहिन घर भर ल पढ़ाथे
घर आउ परिवार म सुनता ल मढ़ाथे
अवतरे से मरत तक सबमा मया गढ़ाथे
अइसे लक्ष्मी रूपी नोनी ल बेटी कहिथे …
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