मन चंगा तो कठौती में गंगा …
©पद्म मुख पंडा
परिचय- रायगढ़, छत्तीसगढ़
अस्थिर मन, देता उलझन, कष्ट बहुत सारा,
मन को, शांत रख सको, तो, जीवन, लगता है प्यारा।
जीवन यापन, सरल नहीं है, श्रम से जो हारा,
बिना कर्म के, मिले न धन, फिर कैसे हो गुजारा!
जन्म से, लेकर, मृत्यु तक, जीवन, सबको प्यारा,
हर पल, हर क्षण, सुख शांति से, बहे यही धारा!
चिन्ता में, व्याकुलता, बढ़ती, जग, लगता कारा !
मिले न अन्न, उदर को, तो, दिन में दिखता तारा!
है विचित्र, मन की चंचलता, फिरता, मारा मारा,
जैसे फिरे, मृग मरीचिका में, दुखी, थका हारा!
मन चंगा, तो कठौती में गंगा, सुन लो यह नारा,
मन मंदिर, मस्जिद, चर्च और है यह गुरुद्वारा !
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