.

सिखोना … | newsforum

©महेतरू मधुकर, (शिक्षक) पचेपेड़ी, बिलासपुर, छत्तीसगढ़


 

 

बैर करे ल बैर बढ़े, बैर ए जी के काल।

मया ले सुख उपजत हे, मयारु मालामाल।।

 

दू दिन के ए जिनगानी, मत कर रे अभिमान।

कब का हो कोन जाने,  कब छुटे जी परान।।

 

अपने गोठ ल खींच के, माने खुद बिदवान।

पाही परबे सबल के, हजा जही ग गियान।।

 

नीचा के देखाय ले, बढ़ै न ककरो मान।

नमरता मन ल हरसाए, सार जी सच्चा जान।।

 

छल, चोरी के चीज हर, देवय न सदा साथ।

दु ही दिन के हली भली, आखिर अपजस हाथ।।

 

बेरा नइ ठहरय कभू, बेरा म कर जुगाड़।

अपन काम कर आप ही, पर आस हे बिगाड़।।

 

गरभ हर तोला खागे, तंय पर दोस लगाय।

धन तो लाखो कमाय ग, फेर जन नइ कमाय।।

 

सब मीत तोर हो जही, सुख होवय ए संसार।

पईसा न कौड़ी लगय, कर मधुर बेवहार।।

 

नसा, जुआ म संगवारी, तन-धन जाय सिराय।

नइ उबरय कोनो एमा, कवि मधुकर समझाय।।

 

माटी म मिले के बाद, कोनो न काम आय।

कर ले कुछु जस के काम, नाव भर रही जाय।।

 

रीस ल कर ले तयं बस म, ए रीस करे बिगाड़।

जो करे रीस म धीरज, जिनगी कर उजियार।।

 

कर तयं काम सेवा के, बंजर भुईंया सीच।

नई करत त परबल दे, ककरो गोड़ न खीच।।

 

करेला कस करु बोली, भाय न कोनो मीत।

गोठ म जो मिठास रखे, दुनिया लेबे जीत।।

 

कतको रह ग संगवारी, सुघर अऊ धनवान।

दूसर ल नई देबे त, मिलय न फेर त मान।।

 

सोच बिचार करव बुता, परे न रोना बाद।

निरंतरता सफलता हे, सिखोना रखव याद।।

 


गीतरचनाकविताकहानीगजलचुटकुलालेख, छत्तीसगढ़ी रचनाएं, लेख आदि  सीधे mail करें newsforum22@gmail.com पर, रचना के साथ दें अपनी एक फोटो, मोबाइल नंबर के साथ, शहर राज्य का नाम भी लिखें.

Back to top button