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देस बंदना | ऑनलाइन बुलेटिन

© महेतरु मधुकर, बिलासपुर, छत्तीसगढ़


 

पहली बंदव मंय….
सोनहा चिरईया ल,
        नमन हे,
        नमन हे,
        मोर भारत भुंईया ल……………….

 

 

सागर तीन ओर ले,
सीमा बन घेरे हे।
उत्तर म पहरेदार,
हिमालय ह खड़े हे।।
        पंईया लागंव मंय,
        मन के हरसईया ल…………………

 

 

गंगा, जमुना, नरबदा के,
कल-कल करत धार हे।
हरा भरा जंगल सोहय,
सुग्घर खेती अऊ खार हे।।
        गुणगान करथंव मंय,
        जन-जन के पोसईया ल………………

 

 

मनखे ले मनखे ल जोरे,
मेला अउ तिहार हे।
गुरु जग मानय अइसे,
संसकिरती, संसकार हे।।
        माथ नवाथंव मंय,
        मया के परसईया ल…………………..

 

 

चलव संगी जुरमिलके,
सपना ल सजाबो।
सरग ले सुग्घर अपन,
देस ल बनाबो।।
        जयकार करथंव मंय,
        जग जस बंहटईया ल…………………..

 

 


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