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उदासी के मौसम…

©भरत मल्होत्रा   

परिचय- मुंबई, महाराष्ट्र


 

फैले दूर तक उदासी के मौसम नहीं होते

अगर तुम पास होते ज़िंदगी में गम नहीं होते

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दिल मिलने की बातें है, राह मिलने से क्या होगा

जहां में साथ चलने वाले सब हमदम नहीं होते

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सूनी-सूनी लगती है भीड़ कितनी भी हो चाहे

कभी यारों की महफिल में अगरचे हम नहीं होते

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खरीदा जा अगर सकता वक्त पैसे से थोड़ा भी

रईसों के घरों में फिर कभी मातम नहीं होते

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और बढ़ते ही जाएँगे लुटाओ जितना चाहे तुम

खुशियों के खज़ाने बाँटने से कम नहीं होते

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भरत मल्होत्रा

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