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सपने मेरे भी एक पिता की तरह अनमोल थे | Newsforum

©नीरज सिंह कर्दम, बुलन्दशहर, उत्तर प्रदेश


 

सपने मेरे भी एक पिता की तरह अनमोल थे

बेटे को गोद में लेकर झूमने को तैयार थे

कांधे पर बिठा खूब घुमाने को बेजोड़ थे

नन्ही अंगुलियों को पकड़ चलने को आतुर थे ।

 

राह देख रहे थे दादा-दादी, कब तुम आओगे

खुशियों से इस घर आंगन को तुम भर दोगे

बड़े पापा, बड़ी मम्मी, चाचा-चाची, बड़े भाई-बहन

सब तुम्हारे साथ खेलने को बहुत उत्साहित थे ।

 

मां तुम्हारी रोज देखती थी हर वक्त राह तुम्हारी

सपने बुनती हजार रोज वो तुम्हारी खातिर

आज गोद सूनी कर गए तुम, कहीं दूर जाकर

आंख भी ना खोल पाए, दादी की गोद में आकर ।

 

रोती है आज बहुत तुम्हारी याद में मां तुम्हारी

देखा मैंने दादा-दादी को रोते हुए तुम्हें याद करके

घर की हर खुशियां सूनी हो गई, बिन तुम्हारे

मैं तो पिता हूं, तो कैसे मैं तुमको भूल जाऊंगा ।

 

मेरा हर वो सपना आज धूमिल हो गया है

जिसमें भविष्य देखता था मैं रोज तुम्हारा

तुम्हें गोद में ले पूरे मोहल्ले में घुमाने ले जाना

कांधे पर बिठा मेला दिखा, खूब मस्ती कराना ।

 

ढोल बजेंगे, दावत होगी, होगा नाच गाना

जब होता हमारे द्वारे आगमन तुम्हारा

घर का हर सदस्य कर रहा था इंतज़ार तुम्हारा

कब आएगा हमारे द्वारे, हमारा राजकुमार ।

 

मिलता तुमको सबसे खूब सारा प्यार

खिल उठते देख तुम हमारा परिवार

मां देखते ही तुम्हारी चूम लेती जब तुमको

मां की गोद में मिलती, खुशियां ढेर सारी ।

 

दादा- दादी खूब खिलाते, करते बहुत प्यार

हर दु:ख अपना भूल जाते, गोद में तुमको लेकर

नामकरण करते दादा- दादी, सर पर रखकर हाथ

माथे पर तेज होता, ऐसा होता नाम तुम्हारा ।

 

जिस द्वारे आनी थी आज खुशियां अपार

टूट पड़ा उस द्वारे आज़ दु:खों का पहाड़

जिस मां की आंखों में दिखती खुशियां हजार

आज वो मां खामोश, आंखों में गम लिए हजार ।

 

बधाई देने वालों की राह देख रहा था द्वार

दिलासा देने वाले आ रहे हैं आज इस द्वार

टूट टूटकर बिखर गए मेरे सारे सपने आज

आंखों में खुशी के नहीं, गम के आंसू आज ।

 

टूट चुका था उस वक्त मैं भी, टूटा था परिवार

जब देखा तुमको, नहीं खोली तुमने अपनी आंख

टूट गई थी मां तुम्हारी, जब हमारी पहली संतान

आंख खोलने से पहले ही हमें अलविदा कह गयी ।

 

आना तुम्हीं मेरे द्वारे, इंतजार करेंगे हम तुम्हारा

गमों को खत्म कर, खुशियां ढेर सारी तुम लाना

महक उठे घर आंगन, तुम्हीं इस आंगन आना,

सपने मेरे भी एक पिता की तरह अनमोल थे ।

 


 

21 मई 2021 को हमें एक बेटे की प्राप्ति हुई, अफसोस हमारा बेटा आंख खोलने से पहले ही हमें अलविदा कह गया। बेटे को समर्पित उसके पिता की एक छोटी सी रचना।


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