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गुलशन उजड़ गया | Newsforum

©सरस्वती साहू, बिलासपुर, छत्तीसगढ़


 

मानव तेरे कृत्य से, दुनिया बिगड़ गया

फूल खिले थे बाग में, वो गुलशन उजड़ गया

 

हरियाली अब रहे नहीं, सड़कों का भरमार

उजड़ा -उजड़ा गांव, शहर, बिछते बिजली तार

कटते पेड़ बहुत यहाँ, जंगल उजड़ गया

फूल खिले थे बाग में, वो गुलशन उजड़ गया….

 

सूख गए सब ताल तलैय्या, नदियों से पानी

संकट में है आज बहुत, सब की जिंदगानी

हंसते खिलते जीवन से, वो खुशियां बिछड़ गया

फूल खिले बाग में, वो गुलशन उजड़ गया…..

 

धरती की न भेष बदल, वो भू-माता है निराली

वही तो पोषण करती है, वही है सबकी माली

जीवन को महकाने वाला, मोती बिखर गया

फूल खिले थे बाग में, वो गुलशन उजड़ गया….

 

दया नहीं है मन में तेरे, सेवा कैसे करेगा

ध्यान रहे तुझको मानव, बिन पानी के मरेगा

समय के रहते जा सम्भल, कैसे बिगड़ गया

फूल खिले थे बाग में, वो गुलशन उजड़ गया….

 

मानव तेरे कृत्य से, दुनिया बिगड़ गया

फूल खिले थे बाग में, वो गुलशन उजड़ गया …


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