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रिमझिम बदरा | Newsforum

©हरीश पांडल, बिलासपुर, छत्तीसगढ़


 

 

रिमझिम बदरा आज गगन से

आंगन में मेरे बरस रहा

प्यासी धरती अपने तपन से

बिन बदरा के तरस रहा

बिन पानी के, नन्हे पौधे

गर्मी से कैसे झुलस रहा

रिमझिम बदरा आज गगन से

आंगन में मेरे बरस रहा

उन कटिली झाड़ियों ने भी

खुलकर अपनी प्यास बुझाई

जो रहते प्रकृति के उपर निर्भर

उन्होंने अपनी जान बचाई

जो बदरा के आगमन के लिए

बहुत दिनों से विवश रहा

रिमझिम बदरा आज गगन से

आंगन में मेरे बरस रहा

दूर दरख्त पर नन्हे गौरेया ने

अपने नये बसेरे का निर्माण किया

गरम लू के थपेड़ों से

गौरेया भी बेकरार थीं

बदरा के आगमन का

उसको मुद्दत से इंतजार था

किंतु इस डर से वह डरती थी

कि घरौंदा उसका सलामत रहे

पिछली बरस के बदरा ने

उसका आशियाना बहा दिया

उस डर से गौरेया बदहवास थी

सबके प्यासे कंठो को देखके

गौरेया ने बदरा का आह्वान किया

भले बह जाये मेरा घरौंदा

आने वाले बदरा से

प्यास सबके बुझ जायेगा

मेरा घरौंदा भले उड़ जाये

लाखों का घर बस जायेगा

रिमझिम बदरा आज गगन से

गौरेया के आंगन बरस रहा

घरौंदा उड़ गया गौरेया का

फिर आज वह बेसहारा थी

सबको खुश होते देख गौरेया

के चेहरे पर मुस्कान थी

इंसानों के सोच भी जिस दिन

गौरेया सा हो जायेगा

समूची धरती पर उस दिन

मानवता सुरक्षित हो जायेगा

इंसानों को शिक्षा नन्ही गौरेया दे रही

रिमझिम बदरा आज गगन से

आंगन में मेरे बरस रहा

रिमझिम बदरा आज गगन से

आंगन में मेरे बरस रहा …


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