बेईमानी के चिरागों से…
©गायकवाड विलास
परिचय- मिलिंद महाविद्यालय लातूर, महाराष्ट्र
बेईमानी के चिरागों से ये सारा ज़माना जगमगा उठा है,
और हम उसी में ही सच की रोशनी ढूंढने चलें है।
शब्दों पे कायम रहे ऐसा कोई वो चेहरा नहीं,
अब ये ज़माना तो गिरगिट को भी पीछे छोड़ आया है।
सुबह से शाम तक पल-पल झूठ के संग गुजरता है,
और वो ईमानदारी का परचम लहराते चलें है।
सोचा नहीं था हमने ये क्रांति इन्सानों का ज़मीर भी मिटायेगी,
ऐसी ज्ञान की रोशनी अब इस मानवता के लिए किस काम की है।
बेईमानी की महफिलों में सच्चाई पर भी कोई भरोसा करता नहीं,
फिर भी वो सच्चाई उजड़ते हुए चमन को जोड़ने चली है।
मत भूलो तुम इन्सानों के बगैर कोई भी वतन खुशहाल नहीं,
उजड़े हुए चमन में, रौनकें बहार कहां होती है।
जिओ और जीने दो सभी को वही हराभरा संसार है,
बगैर अपनों के अपना घर भी उजड़ा हुआ मंजर है।
बेईमानी के चिरागों से ये सारा ज़माना जगमगा उठा है,
सोचो जरा तुम अब वो इन्सानियत भरा दौर कहां खोया है।
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