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कुछ लफ़्ज़ों की मालाएं…

©गायकवाड विलास

परिचय- लातूर, महाराष्ट्र


 

कुछ लफ़्ज़ों की मालाएं मेरी उसी मानवता के लिए,

हर आंगन में यहां फिर से इन्सानियत की महक आएं।

 

फस्ल-ए-बहार देखो आज कितनी विरानी लगती है,

कागज़ के फूलों जैसी क्युं ये सारी दुनिया दिखती है।

 

कहां गई वो खुशबू आज के इस नए जमाने में,

जिस खुशबू से घर-घर की दीवारें भी महका करती थी।

 

हुआ ये कैसा बदलाव,जो ज़माना इतना बदल गया।

क्या,नई क्रांति कहे इसे या कोई नए तुफान का ये आगाज़ है।

 

सुकून सबका छीना,भाग रहे है सभी धन के पीछे,

पहले के वो इन्सान,अब इस नए जमाने में कहां पर है।

 

हर चेहरा आज यहां पर देखो कैसे अंजान बना है,

गैरों की तो बात छोड़ो,रिश्ता भी आज देखो कैसे अजनबी बना है।

 

औरों की तरक्की देखकर आज हर कोई यहां जल उठता है,

तारीफ़ करनेवाले वो लोग,अब बड़े मुश्किल से यहां मिलते है।

 

कुछ लफ़्ज़ों की मालाएं मेरी उसी मानवता के लिए,

आज वही चमन में यहां फिर से उस जमाने की बहार आएं।

Gaikwad-Vilas-Latur-Maharashtra
गायकवाड विलास

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