मानव मन में दया रहे | newsforum
©सरस्वती साहू, बिलासपुर, छत्तीसगढ़
कैसा तू प्राणी रे मानव
आँख मूंद कर चलता है
अंतस में भगवान बसे
तीरथ में ईश को ढूंढता है
पाप मिटाने के लिए
मंदिर तो बनवाता है
पर भूखे के पेट पर
लात तू ही दिखाता है
पुण्य जहां करना होता
वहां पुण्य न करता तू
पेटी भर-भर दान दिये
श्रमदान न करता तू
अज्ञाननींद में ऊंघ रहा
दृष्टि हुई बोझल सी
भावनाएं सूख गई
लक्ष्य पथ ओझल सी
झूठे शान के आगे तू
बारम्बार शीश झुकाता है
पर मुक्ति के द्वार पर
एक बार न माथ नवाता है
रोते को देख के हंसता
दया तनिक न आती है
लालच मन में भरा पड़ा
लघु तुम्हारी छाती है
परोपकार की भाषा तुझको
कभी समझ न आता है
पुण्य कमाने की मंशा ले
पाप भाग लिख जाता है
अभिमान सदा रोड़े बन जाते
सदाचार के मार्ग में
धर्मग्रन्थ को पढ़ा नहीं
कैसे चले सन्मार्ग में
उन्माद हिलोरे लेता है
छलक रहे विचार
गिरता गया विवेक नित
मूढ़ बना लाचार
विवेकहीन होकर जग में
कौन बना महान
सद्बुद्धी कर जाती है
संकट का निदान
पाप -पुण्य के मध्य में
अटका रहा मानव
जिसने पाप का साथ दिया
बनता गया दानव
अनुपम सृजन है मानव
ईश्वर का वरदान
मानव तन दुर्लभ मिले
कर्म करो रख ध्यान
जो भूखे को रोटी दे
अकिंचन को प्यार
पुण्यवान उस प्राणी का
ईश्वर भरता भंडार
मानव मन में दया भरे
छोड़ सदा विकार
सेवा में नित तत्पर होकर
करे जीवन साकार
मानव मन में दया रहे
हृदय रहे उदार
चरित्रवान् बनकर जीये
खुला रखे मन द्वार
ऐसा तू बन जा रे प्राणी
खिले हृदय सुविचार
परहितकारी भाव धरे
अंतस में ईश निहार
उत्तम विचार के खान लिए
करता जा उपकार
एक दिन फिर तेरा होगा
मानव जग में जय जयकार ….