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हे गौतम……..!

©डॉ. वृंदा साखरकर, बहामास

परिचय:- गायनॉकॉलॉजिस्ट, अमरीका में रहते हैं.

हे गौतम,

आज तुम्हारी बहुत जरुरत है

 

TV का बटन दबातीं हूँ

तो दिखता है मलबा बम विस्फोटों से

अख़बार के पन्ने भरे पड़े हुए हैं

बच्चों कि तिलमिलाहटों

और माँ ओ कि कसमसाहट से

रेडियो गा रहा है

युद्ध भरे गीत और देशप्रेम का नगाड़ा

मनुष्य स्वार्थी हुआ है इतना कि

मार रहा अपने हि पैरों पर कुल्हाड़ा

 

हम और वे कि विभाजकता मे

इतना मशगूल हो गया है की

ये भी भुल रहा है की

हम एक ही मानवजात है

एक ही धरणी कि औलाद है

धर्मांधता लालच और सत्ता

के घने कोहरे में

तुम्हारी प्रज्ञा की लौ की

नितांत आवश्यकता है

हे गौतम आज तुम्हारी बहुत ज़रूरत है

 

प्रकृति कर रही हाहाकार है

कहीं जल प्रलय तो कही वडवानल सरेआम है

धरा कही उबाल रही है लावा लाल है

तो कही कर रही है थरथराहट बेहाल है

रेलों, आण्विक भट्टियों बांध बंधारों के टुटने की घटनाए सरेआम है

इस कोलाहल में तुम्हारे शांति और करूणा

की ही बस आशा है

हे गौतम आज तुम्हारी बहुत ज़रूरत है

 

हर तरफ़ आवाजाही और गतीमानता

न जाने कहाँ जाने की है होड

ये भी न जाने मुरख

के क्या धरा पड़ा अगले मोड़

न किसी को है किसी के लिए समय

बस गुर्राहट और फुर्राहट

ईसी को प्रगति माने चले हुए है

थोड़े विश्राम की हमें ज़रूरी है

हे गौतम आज तुम्हारी बहुत ज़रूरत है

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