उसका सितम इनायत से कम नहीं…

©रामकेश एम यादव
सैकड़ों तीर उसे चलाना आ गया,
जैसे मेरे घर मयखाना आ गया।
बढ़ती जब तलब आती है मेरे घर,
उसको भी दिल लगाना आ गया।
छोटे – सी थी अब हो गई है बड़ी,
वादा उसे भी निभाना आ गया।
करते थे पहले छोटी-छोटी शरारत,
अब तो उसमें भी दाना आ गया।
हुस्न और इश्क़ की कहानी अजब,
अब तो उसको रुलाना आ गया।
अश्कों की हुकूमत चलेगी कब तक,
आँखों से आँख लड़ाना आ गया।
चलती है लेकर हुस्न का खजाना,
दामन उसको भी बचाना आ गया।
उसका सितम इनायत से कम नहीं,
उसे अब आँख दिखाना आ गया।
मोहब्बत की चोट से होते हैं घायल,
उसको अब नींद उड़ाना आ गया।
धूप में बनती है मेरा शामियाना,
बिना होंठ हिलाये बतियाना आ गया।

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