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उसका सितम इनायत से कम नहीं…

©रामकेश एम यादव

परिचय- मुंबई, महाराष्ट्र.


 

 

सैकड़ों तीर उसे चलाना आ गया,

जैसे मेरे घर मयखाना आ गया।

बढ़ती जब तलब आती है मेरे घर,

उसको भी दिल लगाना आ गया।

 

छोटे – सी थी अब हो गई है बड़ी,

वादा उसे भी निभाना आ गया।

करते थे पहले छोटी-छोटी शरारत,

अब तो उसमें भी दाना आ गया।

 

हुस्न और इश्क़ की कहानी अजब,

अब तो उसको रुलाना आ गया।

अश्कों की हुकूमत चलेगी कब तक,

आँखों से आँख लड़ाना आ गया।

 

चलती है लेकर हुस्न का खजाना,

दामन उसको भी बचाना आ गया।

उसका सितम इनायत से कम नहीं,

उसे अब आँख दिखाना आ गया।

 

मोहब्बत की चोट से होते हैं घायल,

उसको अब नींद उड़ाना आ गया।

धूप में बनती है मेरा शामियाना,

बिना होंठ हिलाये बतियाना आ गया।

 

Ramkesh M Yadav, Mumbai
रामकेश एम यादव

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