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मजदूर हूं…….

©जलेश्वरी गेंदले, शिक्षिका

परिचय- मुंगेली, छत्तीसगढ़.

 

मन में थकान

आराम की आस

कहां जाऊं आज

भूख भी है और है प्यास

कोई पूछ ले कभी क्या है  मेरा हाल।

 

मजदूर हूं

हालात देख रुक न पाऊ

क्या खाए बच्चे जब तक मैं न कमाऊ

न धूप से घबराना

न पानी से रह जाना

हो बिजली की गड़गड़ाहट

न हो फिर भी घबराहट।

 

मजदूर हूं

दिन का पूरा काम करूं

पल भी न आराम करूं

सुन कई बातों से

दिल को होती है आहत

मजबूरी है मजदूरी भी जरूरी है।

 

मजदूर हूं

न हो  घर की जरूरतें पूरी

जिए जीवन मानो अधूरी -अधूरी

रूखा -सूखा भोजन मिल जाए

दिन बीते खुशहाल

जो बने हलुआ ,पुरी तो लगे

तीज त्योहार  नजारे पूरे के पूरे।

 

मजदूर हूं

कितना बताऊ कहानी

जब तुम्हे मिली सुख- सुविधा

आप जियो खुशहाल की जिंदगी

तब महसूस कर लेना

जहां गिरी होगी

खून पसीना मेरी

जिस से बना होगा

आपका आसियाना खुशनुमा।

 

मजदूर हूं

साहब घर तो बनाते है

पर रह नहीं पाते,

अनाज तो उगाते

कभी भूखा ही सो जाते

गांव तो है

पेट की आग बुझाने

घर से जाना पड़ता है दूर।

 

मजदूर हूं

मेरी कहानी मेरी जुबानी

अगर दिखे कहीं मजदूर

रखना उनके लिए दिल में हमदर्दी

कुछ दो न दो बोल देना दो मीठे बोल

मजदूर हूं।


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